Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 482
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४८१ महानील [महानील] मे तनो भए || महापइन्ना /महाप्रतिज्ञा] मोटी प्रतिशत उव. २२; पत्र. २०५; __ भत्त. १५८; महानीला [महानीलामे नही-2 मे पर्वतमी || महापइरिकतर [महाप्रतिरिक्ततर] अत्यंत निर्जन ઉત્તરે રક્તા નદીને મળે છે સ્થળ ठा. ५१३,९०४: भग. ५६९; महानीसासतराय [महानिःश्वासतरक]ति भोटो | | महापउम [महापद्म] महाडिमवंत पर्वत 6५२नी નિઃશ્વાસ એક દ્રહ, ગોશાળાના ભાવિ અવતારનું નામ, भग. ३६६; ચક્રવર્તીનું એક નિધાન, સાતમાદેવલોકનું એક महादीहारतराय [महानीहारतरक] तिमोटोम વિમાન, વિશેષ નામ કે નીહાર ભૂમિ ठा. ७३७,८१६,८२१,८७५,८७६; भग. ३६६; सम. ४२,१९४,३१८,३५५,३६७ः भग. ६५७; महानुभाग [महानुभागमति माग्यवान् नाया. १५५,२१३; राय. ४२, ठा. ८६,३४७,४२८,७०२,८७२; जंबू. १०६,१११; कप्प. १,२, उत्त.६०० भग. ११४,११५,१२३,१५२ थी १५६, महापउमदह [महापद्मद्रह] महाभिवंत पर्वत १६०,१७१,१७२,१७५,१९४,१९८ थी ઉપરનો એક દ્રહ २००,२२९,३१८; ठा. ३४९; नाया. १४५,२२०; अंत. २७,५०; महापउमद्दह [महापद्मद्रहासो ७५२' अनुत्त. १०; उव. २२,३४; ठा. ८८,९६,५७३; जीवा. १७९; राय. ३३,४६; जीवा. ९८,३०७; जंबू. १३५,१३७ पन्न. २०३,२०५.२१७,२२६,६१४; महापउमरुक्ख [महापद्मरुक्षमापनाम वृक्ष सूर. ११६,१९४,१९५; ठा. ९७,७५३,९८४ः चंद. १२०,१९८,१९९; जीवा. २३९; जंबू. १३,८४,९०,१२६,१३२,२२७; महापच्चक्खाण [महाप्रत्याख्यान] मे गच्छा. ४: देविं. १६९; ( लि) भागमसूत्र उत्त. ३८२,३९६,४१७,४२६; नंदी. १३७; महानुभव [महानुभाव] मायाजी, महापज्जवसाण [महापर्यवसान भनोसत्यंतक्षय મહાપ્રભાવ-શાળી, તેજસ્વી કરવો તે सूय. ३०१,३५८,३७०,६७०,६७३: ठा. २२४,४३१; भग. ८२.२९१.२९४: भग. २७३,३६३,६७२: नाया. २१.४० जीवा. १५८,२००; वव. २८५: उत्त. ११३२; सूर. ११६.१९४,१९५; महापट्टण [महापत्तन] भोटुं६२, मोटुंश:२ चंद. १२०.१९८,१९९: गच्छा. ५१; || उवा. ४६; उव. २१; महापइण्णा [महाप्रतिज्ञा भोट प्रतिश। २नार महापडिमा [महाप्रतिमा) रोमभिः उत्त. ७६५: भग. १७२, अंत. १३; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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