Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
View full book text
________________
४७२
आगमसद्दकोसो
विवा. ५;
मह [म] भंथन , लोक्यूँ
भग. ५७१: भग. १७२,५०६; नाया. २११; महंती [महती] भोटी, विशा उवा. ४४; राय. ७१
पण्हा. ३३; राय. २३: जंबू. २२६; पप्फि .५:
महंधकार [महान्धकार] ua अंधार मह [मह] महोत्सव
ठा. ३१०,
भग. २९१ जीवा. १८५;
महक्खंध [महास्कन्ध] भोटो महआस [महाश्च महान् घोडी
पण्हा. २१,२४: जंबू. १२१;
महक्खम [महाक्षम] वधु क्षमावान् महइ [महती भोटी, विशण
भग. ४६४ सूय. ६६४; सम. १३१,२३७; महक्खर [महक्षर] विशेष क्षरते भग. ११३,५०८,५३०,६७५,७२७;
ओह. १६; नाया. २५,६७,१०६,१५४,२२०; महग्गय [महाग्रह) ८८-मोटा हो उवा. ६,२०,२९,३२,३४,३७,४३;
जंबू. २८४; अंत. १३,२७; अनुत्त. १०
महग्गह [महाग्रह] ८८-मोटो हो राय. ६२
ठा. २८७,७२३ सम. ४९,१६७: जीवा. ९५ पन्न. १९६;
भग. ४८९;
जीवा. १९५,२०१. जंबू. ४,४६;
२२४,२३४,२३९,२४५,२५०; महइमहालिय [महतीमहत्] अति विप
सूर. ८५,९८,१११,१६५,१९८; निर. ७; पुष्फ. ३;
जंबू. २५०,२७८,३३८; महंत [महत्] भो, विun
पुष्फि . ५,७; आया. १२३; सूय. ३१०,३२३, ।। देविं. ११६,११९,१२२,१२५,१३२; ३३७, ५५२,६३४,७६३;
महग्गहत्त [महाग्रहत्व] भोट ५j भग. ५०६,५८७,६३०,६७२;
पुष्फि .७; नाया. ९,१५३,१७७; अंत. ३;
महग्गि [महानि विपुलमान पण्हा. १६,३९: विवा. १३,२४;
पण्हा . ८; उव. ६,२१:
राय. ४८,५२; महग्ध [महाय॑ वधु भूस्यवान, भती जीवा. १०५,१०८; पत्र. ५४४;
सम. १४२; जंबू. ४ निर. ५;
भग. १३२,१६०,२००,४६०,४६५.५०६, वण्हि . ३:
उत्त. ६३२,१३५१; ५१८,५२६,५३१,५३५,५८७,६४५,६५२, नंदी. ३६:
६७६,७४४,७५६: महंत [काङ्क्त्याइते
नाया. १५,२२,३३,५७,६५,६८,८६,८८, पण्हा. १५
१०३,१४४,१४५,१५७,१६९,१८०,१८४, महंततर [महत्तर]मति विun
१८५,२११,२१५: जंबू. १३६,१४०;
उवा. ५,११,१४,२०,२९,३२,३४,३७,४३, महंतिया [महती] भोटी, विशाण
४५,४९,५७,५८;
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546