Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૪૫૧
मज्झिमिय [मध्यमिका मो ७५२'
उवा. ४४,
अंत. १३: जीवा. १५६ थी १६०,१७०,३२५;
विवा. १०; उव. ४८; मज्झिमिल्ल [मध्यम] मध्यमा रहेर
राय. १०,४२; जीवा. १७९; जंबू. २०१: अनुओ. २१४;
जंबू. १२२,२४०; मज्झिमिल्ला [माध्यमिकी मध्यमi
निसी. १२३४,१२७५; दसा. ५३;
दस. १०८; उत्त. १३८,१५३६: मज्झिय [मध्यक मध्यमा २३
मट्टियाकड [मृत्तिकाकृत] भाटीथी ५२येटर जीवा. १८५; जंबू. ३४;
आया. ४९९; निसी. ५३९,७९२, मज्झिल्ल [मध्यमा मध्यमा २३
८८५,११०१,१३१४: ठा. ४१७;
मट्टियाखाणि [मृत्तिकाखानि] भाटीनी un भग.७६,५१०,६४८,६८३,९९८,९९९; निसी. १९०; जीवा. २०२; . जंबू. ५४;
मट्टियापानय [मृत्तिकापानक] भाटीयाjupil मज्झिल्लग [मध्यमक/ मध्यमा रहे
भग. ६५१,६५२: भग. ९९८;
मट्टियापाद [मृत्तिकापात्र] भाटी- पात्र मज्झिल्लय [मध्यमक] मध्यमा २३
ठा. १८३; भग. ८४६ थी ८४८,८५६;
मट्टियापाय [मृत्तिकापात्र भाटीनुपात्र मज्झोमज्झि [मध्यंमध्य] वयोवथ्य
आया. ४८६; उव. ४८,५०; महानि. १५१६;
निसी. २९,८३,३७९; मज्झोमज्झी [मध्यमध्य वयोवथ्य
मट्टियामय [मृत्तिकामय] भाटीनुबने महानि. १३५;
उत्त. १००३; मट्टि [मृत्तिका] भाटी, धूम
मट्टी /मृत्तिका] धुण, माटी सम. ५१;
आव. १६; मट्टिओलित्त [मृत्तिकोपलिप्त] भाटीनलेपथी लपेj || मट्ठ [मृष्ट] पसीने सा रे, मनो३२, २भए।य, पण्हा. ४५;
ચીકણું मट्टिय [मृत्तिक] भाटीन
आया. ३९८,४७८,४८६.४९७,७९८; ओह. ४६३;
सूय. ३६३,६७०; टा. ३२७,७०२; मट्टियखाणिया मृत्तिकाखानि माटीनी पाए। सम. २३८,२४१; भग. १४०,५१८; आया. ५००
नाया. १२;
उवा.८; मट्टियभंड [मृत्तिकाभाण्ड] भाटीना वास
पण्हा. १९ भग. ६४६;
उव. ५,१०,२२,३४,५५; मट्टिया [मृत्तिका] धूम, माटी
राय. १५ थी १७,२७,२९.३६,३८; आया. २३५,२३९,३६७,३७२,४४८, जीवा. १६२,१६३,१७५,१७६,१८५: ४५१,४९९,५०१;
पन्न. २०५,२१७,२२६,२२८,२३४; ठा. २५०,२५५; भग. २२८,३३३; सूर. १९७; जंबू. ४,१३,१४३; नाया. ३३,५२,६७,७४,९२;
बुह. ४३;
अनुओ. २२;
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