Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 388
________________ (सुत्तंकसहिओ) ३८७ सम. २४६; भग.७३४,७७९,८०५, || बोड [दे. मात्र मस्त मुंडित ८४७,८६३,१०६२,१०६३; पिंड. २१७; पन्न. १८,१४९,२६२,३१७,३३४; बोडियसाला [दे. पासवेयवानी हुन बेंदियमहाजुम्मसत द्वीन्द्रियमहायुग्मशतक] वव. २२९,२३०; ભગવઇ' સૂત્રનું એક શતક बोद्रव्व [बोद्धव्यवायोग्य भग. १०६० देविं. ५३,८७,८८,९१,१८४,२८५; बेंदियसत द्वीन्द्रियशत शत बोधण [बोधन] 6पहेश, शिक्षा वयन भग. १०६१ सम. २२२; बेदोणिय वैद्रोणिका बेद्रोए। समाए। बोधव्व बोद्धव्य एवायोग्य उवा. ४९; भग. २८,१९०,३९७,५७३,१००३; बेयाहिय याहिका वेतरियो तर अंत. ४१,४६; अनुत्त. ३; जीवा. १८५; जंबू. ३७; उव. ६०,६१; जीवा. १२८; अनुओ. २८०.२८२,२८४,२८६; पन्न. २८,३७,४०,४९,६९,७२,९०,१६४, बेलंब विडम्बापी। २४०,३७४,३८८,४४२, पण्हा . ३६; सूर. २०५; जंबू. १५८,२९१; बेला बेला] वे दस. २२३; उत्त. १४७४,१५७४; जीवा. २०४; नंदी. ६८; अनुओ. १५४; बेहिय [याहिक अंतरीयोव बोधि [बोधिसभ्यराशन, धर्मति, निधर्म भग. १९५,३०९; जंबू. २७; ___ठा. ६४ थी ६६,१०२,१६३,१६४; बोंड दे. उपासना बोधित [बोधितपोध पामेल जीवा. १८५; पण्हा. १९; बोंडइ [दे. समांथी बनेर बोधिय [बोधितबोध पामेल पन्न. ४७ जीवा. १८५; बोंडय [बोण्डज हुमो ७५२' बोधियसाला [बोधिकशाला]मोधिsun अनुओ. ४१ दस. ४३५,४३६; बोंदि (बोन्दि] शरीर, भुप बोर [बदर] मोर आया. ५२३; सूय. ६७०,६७१; ___ भग. ४०३,८२५; नाया. १८५; ठा. ३६४.७०२: भग. १७२,३६६; पन्न. ४४१,४६५: उवा. २५: पण्हा . ७; बोरी [बदरी] पोरी उव. २२; राय. ७४; अनुत्त. १०; पन्न. २०५,२२६; जंबू. २२७ बोल [दे.बोलया, दाइ, घोंघाट देविं. २८१: दसा. ३३; भग. ११२,१९५; नाया. ८७,२१०; उत्त. १४६३,१५१९; अनुओ. १६१; पण्हा. १५,१६, विवा २१,२२; बोक्कस [बोक्कस agfis२ ति उव. २१,२४, राय. १२,५४; सूय. ४३८; जीवा. १८५,२८८; पन्न. २१७; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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