Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 396
________________ (सुत्तंकसहिओ) ૩૯૫ जीवा. ३००; पन्न. ३२४; जंबू. ३३१; वीर. १८,४१; भति [भृति मावि, रोछ उव. ८; भत्त भक्तामोशन, रांधेदुमन आया. ३०६,३४३,४०१,४५२,४९२, ५१२,५२४,५३२,५३५; सूय. ८६,६७०,७९४,८०४; ठा. ७६,१९५,३०१,४५३,५८२,६७०, ७०२,९३६; सम. २१,२१५,२२३,२३२,२८८; भग. ११६,१५६,२२८,३७७,४६२,४८७, ५२३,५३३,५८८,६२६,६३८,६७६, ७२७,९६५,९६९; नाया. ४०,४३,५७,६४,७६,१४०,१४५, १५२,१६७,२१५,२२०; उवा. १२,१९,३१,३३,३६,४०,४७; अंत. ५,१३,२०,२७; अनुत्त. १०; पण्हा. ३७,३८,४५; विवा ४,१३,२०,२४,३१,३२,३७; उव. ६,८,१९, राय. ४८,८१; जंबू. ४३,४४,१२५; कप्प. १; पुष्फि . ३,८.९; वण्हि . ३; वीर. १७: बुह. १३५ दसा. ३५,४९; जीय. १७.१९; ओह. ३० पिंड. २१३; दस. ३,७६,११६,४६०.५३०; उत्त. ३,३८६,५१६,६९३,१०३७,१०७२, ११५३,१४५३,१४५४; नंदी. १४४ थी १४९; अनुओ. २५६; भत्तकहा [भक्तकथा]मोन संधिवातो टा. ३०१,३०३,६६८; सम. ४; उव. ४८.४९; आया. २३; भत्तघर भक्तगृह मोन, रसोडे भग. ६५५; नाया. १५९; विवा ३३,३७; भत्तघरय [भक्तगृहक]gो 6५२' विवा ६; भत्तट्ट [भक्तार्थ भो४न माटे बुह. १९५; ओह. २२८,३२४; भत्तद्विय [भक्तस्थित मोनार्थ २३८ ओह. ४८,२९६; भत्तपच्चक्खाण [भक्तप्रत्याख्यान] मोनथी નિવૃત્તિ, સંથારાનો એક ભેદ ठा. ११०; सम. २२२ थी २२५; भग. ११२,५९२,६२१,७०५,९६५; उव. १९; भत्तपच्चक्खाणमरण [भक्तप्रत्याख्यानमरण] સંથારો કરી સમાધિ ભાવે મરવું તે, પંડિત મરણનો એક ભેદ सम. ४२ भत्तपडियाइक्खिय [प्रत्याख्यातभक्तामोनन કરવાનો નિયમ કરવો તે दसा. ५३; भत्तपरिण भक्तपरिज्ञामोनाहिना निवृत्तिनी પ્રતિજ્ઞા કરેલ भत्त. १,११,३५,१७०,१७२; भत्तपरिण्णा [भक्तपरिज्ञा] (डीए) मागम સૂત્ર, ભોજનાદિ ન કરવાનો નિયમ भग. १६८; भत्त. १; भत्तपरिना [भक्तपरिज्ञा]मो 6५२' आउ. ८: ओह. ११३१: भत्तपरिन्नापसत्थवोहित्थ [भक्तपरिज्ञाप्रशस्त वहिमतपरिश३५शुमाए।-(ठेनाथी ભવસમુદ્રતરાય) भत्त. १८: भत्तपरिनामरण [भक्तपरिज्ञामरण] 'मdिuRu' -પૂર્વકનું મરણ, પંડિત મરણનો એક ભેદ __ भत्त. ९,१०.१४ भत्तपान [भक्तपान मोन-पान उवा. ५: जंबू. ८०.१२५; गणि. १४; ओह. ३५,२३६; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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