Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan

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Page 408
________________ (सुत्तंकसहिओ) ४०७ जीवा. ६७,९४,१०६,१३०,१५०; वव. १८३; दसा. ३५: पन्न. २०५,२९६,३००,३१७,३२९; उत्त. ३९,१६३,४२८; सूर. २१,२९; दसा. १६ः भाय भाजलागयो भाणिय [भणित] j, भोj राय. ४२ जीवा. १७९ जंबू. ६२,९६: जंबू. २४० भाणियव्वं भिणितव्या वायोग्य भाय [भाग] मारी, प्रदेश ठा. ५१,८८,१४६,३२४,४७२,५९४ः आया. ३४३,५११; सूय. ६३३; सम. १५२,१९२,२३४,२४१,२४६; भग. ११२,११३; नाया. ४६,४७; भग. ११,१०७,१५३,२१०,२१८,२८६, उवा. २४,२७; अनुत्त. १०, ३२८,३८३,४७५,४९८,५३७,५६४, विवा ३१; राय. ७९; ५९८,६४४,६६५,६९७,७२२,७५९, जीवा. १८५; ७८१,८०८,८३४,८३८,९७६,९९१,९९२, जंबू. ११,२०,५४,९८,१२७,१२९,१३१, ९९५,९९८,१००३; १३४,१३७ थी १४३,१४६,१६७,१७३, नाया. २०,९१,२२६,२२७,२३३; १८०,१९४,२५५ थी २५८,२६२,२६६, अनुत्त. २,१३, विवा ३७; २७३,२७४; राय. २४,३०,३४,३५,६४; निर. १४,१६; उत्त. १०२३; जीवा. १४,६०,९४,१५८,३६७,३९५; भाय भी] 3२j,जी पन्न. २१८,३१९,३३२,३५७,३७२,३८९, दस. ४९६; ४०१,४२३,४४१,४४४,५०२,५११,५२६, || भायण [भाजन] पात्र, वास। ५४१,५४६ थी ५४९,५५२,५७२,५९२; आया. ३६७; सम. ५५; सूर. ३५,३६,३९,११२,१९७; भग. १३४,२००,४२३,६३८,७८२: जंबू. ८,३२,९५,१२८,२१४,२४५; नाया. ५१,७५,८७,१४९,१५९; निर. २०: कप्प. ३: उवा. १७; अंत. १३; पुप्फ.३; वहि . ३: अनुत्त. १०; निसी. २३४; पण्हा. ७,२१,३५,३८: विवा १२; दसा. १६; अनुओ. ९५; जंबू. ३७ निर. १०; भाणी दे. हरित वनस्पतिय निसी. २३३,७६०,७६१,१२७४; पन्न. ७७,१४६: दसा. ३; दसा. १०७,१२१ भाति भ्रातभाई, बंधु उत्त.६३६,१०२८,१०८४; टा. ३४३: भायणजाय [भाजनजातवास पात्रमाथयेस भामरी भ्रामरी] वीएu, वाध विशेष आया. ३९६: राय. २३: भायणट्ठाण /भाजनस्थान] पात्र-वास। भाय [भ्रातभाई, बंधु રાખવાનું સ્થાન आया. ६३: भग. ४०१ पिंड. ३०३: नाया. ८७: पण्हा. ८: भायणठिय [भाजनस्थित] वासमाउस जीवा. १८५: बुह. ११९: पिंड. २११; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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