Book Title: Agamsaddakoso Part 3
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agamdip Prakashan
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(सुत्तंकसहिओ)
૩૫૩
सूय. १८१,२९८,३२६,३९४,४१७,४१, || फासण [स्पर्शन/स्पर्शन्द्रिय ४८६,५३३,६४५,६६५,६७५;
ठा. ५२८;
अनुओ. ३३७; ठा. ४७,८०,१७३,२७९,४२४,४६०,६६१, फासणता /स्पर्शन] स्पर्शन ६९०,७०२,८७५,८९१,९८५;
ठा. ५२८; सम. ५,५२,२३४,२३७ः
फासतो स्पर्शतस्] स्पर्शनाश्रिने भग. ११२,१४२,२५७,३१६,३६२,३८३,
जीवा. ८७; _पन्न. १३,५५४;
फासत्त [स्पर्शत्व स्पर्शपj ३८६,४६०.५०८,५४२,५७०,६१३, ७४०,७६१,७८०,७८६;
नाया. १४४,१५७;
फासनाम [स्पर्शनामन्] नामभनी प्रति नाया.२७,६५,८१,१४३,१५७.१९२;
सम, ५५,६२,११८ पन्न. ५४०; उवा. २५; पण्हा .७;
फासपज्जव स्पर्शपर्यवस्पर्शपर्याय उव. ५, राय.१५:
जंबू. ३९,४७ थी ५०,५३,३६२; जीवा.५,१०८,१६८;
फासपरिणाम [स्पर्शपरिणाम स्पर्शन परिमान पन्न. १३,१९६,२९६,३०८ थी ३२०,३२४,
જેમકે ઉષ્ણશીત વગેરે ३२५,३७४,३९१,४२४,४६५,५३९,५५२,
पन्न. ४०८,४१२; ५८५,६१४;
फासपरियार [स्पर्शपरिचार स्पर्श द्वारा विषय सूर. १९७,२०४ चंद. २०१,२०५;
સેવન जंबू.६,३२,१०१,१२९,२२८,३६२;
पन्न. ५९२; महाप.५९; देविं. २०४,२२२;
फासपरियारग [स्पर्शपरिचारक] स्पर्श मात्रथी दसा. ३६; आव. २३;
વિષય સેવન કરનાર दस. ३७६;
पत्र. ५८९,५९२,५९३; उत्त.१२६,३१५,५२१,७९०,१०८७,११८०, फासपरियारणा [स्पर्शप्रविचारणा मात्र स्पर्शद्वारा १३२०,१३८४,१४८४;
વિષય સેવન કરવું તે नंदी. १२०,१२५; अनुओ. १५१,३०१; पन्न. ५८९,५९२; फास /स्पृश] स्पर्श, २७g
फासपवियार [स्पर्शप्रविचार] हुमो ७५२' आया. १४९; ठा. १७३,१७८;
देविं. २००; भग. ११४; नाया. ३९;
फासमंत [स्पर्शवत/स्पर्शत उवा. १५; अंत. ५,
आया. ४६६, सूय. ६३३ थी ६३८; . आव.३२; दस. ४२
ठा. ३६३,४७९; भग. १०७,४९८; उत्त. १५१,७५१,७९४,८४४;
जीवा. १४;
पन्न. ३९१,५५२; फासइत्ता स्पृष्ट्वा] स्पशनि, मीने
फासय [स्पर्शका स्पर्श २नार
नाया..१५;
भग. ५१८; उत्त. १११३;
उत्त.३१०; फासओ [स्पर्शतस्]स्पर्शने आश्रिने
फासयंत [स्पृशत्] स्पर्श २योते भग. ३८३,७५५; जीवा. ६,७:
भग. ९३७.९३८; पण्हा. ३८,४५; पत्र. १३.३९१: उत्त. १४७९;
फासविण्णाणावरण [स्पर्शविज्ञानावरण] स्पर्श फासचरिम [स्पर्शचरम यास्मिनोसमेह
સંબંધિ જ્ઞાનનું આવરણ भग.३९९; पन्न. ३७३;
पत्र. ५३९ |3 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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