Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 12) [श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्दशमी विमाग तवोकम्नगडि प्रायो, हरिवंसंगंडियाओ, उस्सप्पिणीगंडिपात्रो, थोमपिणीगंडियायो, चित्तरगंडियायो, अमरनरतिरित्र-निरय-गइगमणविविह-परियट्टणेसु एवमाईबायो गंडियायो अाघविज्जति पन्नविज्जति, से तं गंडिपाणुयोगे 3 / से तं अणुयोगे 4 // 4 // सू० 47 // से कि तं चूलियायो ? चूलियायो आइल्लाणं चउराहं पुवाणं चूलिश्रा, सेसाई पुव्वाई अचूलियाई, से तं चूलियारो // 5 // सू० 48 // दिट्ठिवायरस ण परित्ता वायणी संखिज्जा अणुयोगदारा संखिजा वेढा संखिजा सिलोगा संखिजायो निज्जुत्तियो संखिजायो पडिवत्तियो संखिन्जायो संगहणीयो 1 / से णं अंगट्टयाए बारसमें अंगे, एगे सुग्रक्खंधे, चउदम पुव्वाई, संखिज्जा वत्थू, संखिज्जा चूलवत्थू, संखिज्जा पाहुडा, संखिज्जा पाहुडपाहुडा, संखिज्जायो पाहुडिया, संखिज्जायो पाहुडपाहुडियायो, संखिज्जाई पयस. हस्साई, पयग्गेणं, संखिजा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पजवा, परित्ता तमा, अणंता थावरा, सासय-कडनिबद्ध-निकाइया जिणपन्नत्ता भावा याघविज्जति पन्नविज्जंति परुविज्जति दंसिज्जंति निदंसिज्जति उवदसिज्जंति 2 / से एवं पाया से एवं नाया से एवं विनाया से एवं चरणकरणपरूवणा श्राघविजइ 3 / से तं दिट्ठिवाए 4 // 12 // सू० 41 // इच्चेइयंमि दुवालसंगे गणिपिडगे अणंता भावा अणंता अभावा अणंता हेऊ अणंता अहेऊ अणंता कारणा श्रणंता अकारणा अणंता जीवा अणंता अजीवा श्रणंता भवसिद्धिया अणंना अभवसिद्धिया अणंता सिद्धा अणंना असिद्धा पन्नत्ता 1 / भावमभावा हेउमहेऊ कारणमकारणे चेव / जीवाजीवा भविश्रमभविया सिद्धा असिद्धा य // 1 // इच्चेयं दुवालसंगं गणिपिडगं तीए काले अणंता जीवा प्राणाए विराहित्ता चाउरतं संसारकतारं अणुपरि. अट्टिसु 2 / इच्चेझ्य दुवालसंगं गणिपिडगं पडुपन्नकाले परित्ता जीवा श्राणाए विरादित्ता चाउरतं संसारकतारं अणुपरिहित 3 / इच्चेइयं
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