Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ श्रीमदनुयोगद्वार-सूत्रम् ] [ 39 उभयोकालं श्रावस्सयस्स उबटुंति, से तं लोगुत्तरियं दव्यावस्सयं, से तं जाणयसरीर-भविग्रसरीखइरित्तं दव्वावस्सयं, से तं नोपागमतो दवावस्सयं, से तं दवावसयं // सू० 21 // से किं तं भावावस्सयं ?, 2 दुविहं पराणत्तं, तंजहा-बागमतो अ नोबागमतो अ॥ सू० 22 // से किं तं बागमतो भावावस्सयं ?, 2 जाणए उपउत्ते, से तं श्रागमतो भावावस्सयं // सू० 23 // से कि तं नोबागमतों भावावस्सयं ?, 2 तिविहं पराणत्तं, तंजहा-लोइयं कुप्पावयणियं लोगुत्तरियं // सू० 24 // से किं तं लोइयं भावावसयं ?, 2 पुव्वराहे भारहं अवररहे रामायणं, से तं लोइयं भावावस्सयं // सू० 25 // से किं तं कुप्पावयणियं भावावस्सयं 1,2 जे इमे चरगचीरिग जाव पासंडत्या इज्जंजलि-होम-जपोन्दुरुक्क-नमोक्कारमाइबाई भावावस्सयाइं करेंति, से तं कुप्पावयणि भावावस्सयं // सू० 26 // से किं तं लोगुत्तरियं भावावस्मयं ?, 2 जगणं इमे समणो वा समणी वा सावत्रो वा सावित्रा वा तचिते तम्मणे तल्लेसे तदभवसिए तत्तिव्वझवसाणे तदट्ठोवउत्ते तदप्पिकरणे तब्भावणाभाविए अराणस्थ कत्थइ मणं अकरेमाणे (एगमणे अविमणे जिणवयण-धम्मवागरत्तमणे) उभयोकालं श्रावस्सयं करेंति, से तं लोगुत्तरियं भावावस्सयं, से तं नोबागमतो भावावस्सयं, से तं भावावस्सयं // सू० 27 // तस्स णं इमे एगट्ठिा णाणाघोसा णाणावंजणा णामधेजा भवंति, तंजहा-श्रावस्सयं 1 अवस्सकरणिज्जं 2 धुवनिग्गहो 3 विसोही 4 अ / अज्झयणछक्कवग्गो 5 नायो 6 श्राराहणा 7 मग्गो 8 // 2 // समोणं सावएण य अवस्सकाय वयं हवइ जम्हा / अंतो ग्रहोनिसस्स य तम्हा श्रावस्सयं नाम // 3 // से तं श्रावस्सयं // सू० 28 // से किं तं सुतं ?, 2 चउब्विहं पराणत्तं, तंजहा-नामसुयं ठवणसुग्रं दव्वसुधे भावसुधे // सू० 21 // से किं तं नामसुग्रं ?, 2 / / जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अनीवाण वा तदुभयस्स :
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