Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 49
________________ 40 ] [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्दशमो विभागः वा तदुभयाण वा सुएत्ति नाम कन्जइ, से ते नामसुयं // सू० 30 // से किं तं ठवणासुग्रं ?, 2 जंणं कठुकम्मे वा जाव ठवणा ठविजइ, से तं ठवणासुग्रं / नामवणाणं(यो) को पइविसेसो ?, नाम श्रावकहिग्रं, ठवणा इत्तरिया वा होजा श्रावकहिया वा // सू० 31 // से किं तं दव्वसुओं ?, 2 दुविहं पराणत्तं, तंजहा-यागमतो अ नोयाममतो थ // सू० 32 // से किं तं श्रागमतो दुव्वसुधे ?, 2 जस्त णं सुएत्ति पयं सिक्खियं ठियं जियं जाव णो अणुप्पेहाए, कम्हा ?, अणुवयोगो दव्वमितिकटु नेगमस्स णं एगो अणुवंउत्तो यागमतो एगं दव्वसुधे जाव कम्हा ? जइ जाणए अणुवउत्ते न भवइ, से तं श्रागमतो दब्बसुयं // सू० 33 // से किं तं नोबागमतो दव्वसुग्रं ?, 2 तिविहं पराणत्तं, तंजहा-जाणयसरीरदव्वसुग्रं भविसरीरदव्वसुग्रं जाणयसरीर-भविग्रसरीरवरित्तं दव्वसुयं ॥सू० 34 // से किं तं जाणयसरीरदव्वसुयं ?, 2 सुयत्तिपयत्थाहिगारजाणयस्स जं सरीरयं ववगयचुपचावियचत्तदेहं तं चेव पुठवभणियं भाणियवं जाव से तं जाणयसरीरदव्वसुयं // सू. 35 // से किं तं भविसरीरदव्वसुयं ?, 2 जे जीवे जोणीजम्मणनिक्खते जहा दवावस्मए तहा भाणिग्रव्वं जाव से तं भविप्रप्तरीरदव्य सुग्रं // सू० 36 // से किं तं जाणयसरीर-भविग्रसरीरवइरित्तं दध्वसुग्रं ?, 2 पत्तयपोत्थयलिहिग्रं, अहबा जाणयसरीरभविग्रसरीवइरित्तं दब्बसुग्रं पंचविहं पराणत्तं, तंजहा-अंडयं बोंडयं कीडयं वालयं वागयरवक्कयं), से किं तं अंडयं ? अंडयं हंसगम्भादि, संतं अंडयं, से किं तं बोंडयं ? बोंडयं फलिहमादि (कप्पासमाइ), से तंबोंडयं, से किंतं कीडयं ?कीडयं पंचविहं पराणत्तं, तंजहा-पट्टे मलए अंसुए चीणंसुए किमिरागे, से तें कीडयं, से किं तं वालयं ? वालयं पंचविहं पण्णत्तं, तंजहा-उरिणए उट्टिए मिश्रलोमिए कोतवे किट्टिसे, से तं वालयं, से किं तं वागयं ? वागयं सणमाइ, से तं वागयं, से तं जाणयसरीर-भविसरीरवइरित्तं दव्वसुधे,

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