Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 112 ) [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः : चतुर्दशमो विभागः सागरोवमाई 121 / मज्झिम उवरिम-गेवेजविमाणेसु णं भंते ! गोयमा ! जहराणेणं सत्तावीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोक्माई 130 / उवरिम-हेट्ठिम-गेविजविमाणेसु देवाणं, गोयमा ! जहरणेणं अट्ठावीसं सागरोचमाई उक्कोसेणं एगूणतीसं सागरोवमाई 131 / उवरिम-मज्झिमगेविजविमाणेसु णं भंते ! देवाणं, गोयमा ! जहणणेणां एगणतीसं सागरोक्माइउकोसेणं तीसं सागरोवमाई 132 / उवरिम-उबरिम-गेवेज विमागोसु णं भंते ! देवाणां. गोयमा ! जहराणेगां तीसं सागसेवमाई उक्कोसे एक्कतीसं सागरोवमाई 133 / विजय-वेजयंत-अपराजित-विमाणेसु णं भंते ! देवाणां केवइग्रं कालं ठिई पराणता ?, गोयमा ! जहराणेणं एक्कतीसं सागरोवमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई 134 / सबट्टसिद्धे णं भंते ! महाविमाणे देवाणां केवइयं कालं ठिई पराणत्ता ?, गोयमा ! अजहराणमणुक्कोसेणां तेत्तीसं सागरोवमाई 135 / से तं सुहुमे श्रद्धापलिश्रोवमे 136 / से तं श्रद्धापलियोवमे 137 // सू० 131 // से किं तं खेत्तपलिग्रोवमे ?, 2 दुविहे पराणत्ते, तंजहा-सुहमे अ, वावहारिए श्र 1 / तत्थ णं जे से सुहुमे से टप्पे, तत्थ णं जे से ववहारिए से जहानामए पल्ले सिधा जोत्रणं थायामविक्खंभेणं जोधणं उब्बेहेणं तं तिगुणं सविसेसं परिक्खेवेणं. से णं पल्ले एगाहिन-बेत्राहि-तेत्राहिय जाव भरिए वालग्गकोडीणं, ते गां वालग्गा णो अग्गी हेजा जाव णो पूइत्ताए हव्वमागच्छेजा, जे णं तस्स पल्लस्स श्रागासपएसा तेहिं वालग्गेहिं अप्फुन्ना तयो णं समए 2 एगमेगं श्रागासपएसं अवहाय जावइएणं कालेणं से पल्ले खीणे जाव निट्ठिए भवइ, से तं ववहारिए खेत्तपलिश्रोवमे 2 / एएसिं पल्लाणं कोडाकोडी भवेज दसगुणिया / तं ववहारिश्रस्स खेत्तसागरोवमस्स एगस्स भवे परीमाणं // 113 // 3 / एएहिं ववहारिएहि खेत्तपलियोवम-सागरोवमेहिं किं पयोधणं ?, एएहिं ववहारिएहि नस्थि
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