Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ 142 [ श्रीमदागमसुधासिन्धुः / चतुर्दशमो विभागः ६७।से किं तं श्रागमयो भावसामाइए ?, 2 जाणए उवउत्ते, सेतं श्रागमयो भावसामाइए ६८।से कि तं नोागमयो भावसामाइए ?; २-जस्स सामाणियो अप्पा, संजमे णिश्रमे तवे / तस्स सामाइ होइ, इइ केवलिभासियं // 127 // जो समो सवभूएसु, तसेसु थावरेसु श्र। तस्स सामाइयं होइ, इइ केवलिभासियं // 128 // जह मम ण पियं दुक्खं जाणित्र एमेव सव्वजीवाणं / न हणइ न हणावेइ अ सममणइ तेण सो समणो // 126 // णत्थि य सि कोइ वेसो पियो श्र सव्वेसु चेव जीवेसु / एएण होइ समणो एसो अन्नोऽवि पजायो॥ 130 ॥उरग-गिरि-जलणसागर-नहतल-तरुगण-समो अ जो होइ / भमर-मिय-धरणि-जलरुह-रविपवणसमो असो समणो // 131 // तो समणो जइ सुमणो भावेण य जइ ण होइ पावमणो / सयणे अजणे अ समो समो अमाणावमाणेसु // 132 // से तं नोग्रागमश्रो भावसामाइए 61 / से तं भावसामाइए, से तं सामाइए, से तं नामनिष्फराणे 70 / से किं तं सुत्तालावगनिष्फराणे ?, 2 इअाणिं सुत्तालावयनिष्फराणं निक्खेवं इच्छावेइ, से अ पत्तलक्खणेऽवि ण णिक्खिप्पइ, कम्हा ?, लाघवत्थं, अत्थि इश्रो तइए अणुयोगदारे अणुगमेत्ति, तत्थ णिक्खित्ते इहं णिक्खित्ते भवइ, 'इई वा णिक्खित्ते तत्थ णिक्खित्ते भवइ, तम्हा इहं ण णिक्खिप्पइ तहिं चेव निक्खिपइ, से तं निक्खेवे 71 // सू० 150 // . से किं तं अणुगमे ? 2 दुविहे पराणते, तंजहा-सुत्ताणुगमे अ निज्जुत्तिणुगमे अ 1 / से किं तं निज्जुत्तिणुगमे 1, 2 तिविहे पराणत्ते, तंजहा-निक्खेव-निज्जुत्ति-अणुगमे उवग्याय-निज्जुत्ति अणुगमे सुत्तष्कासिथ नियति-अमुममे 2 / से किं तं निक्खेव-निज्जुत्ति-अणुगमे ? अणुगए, से तं निक्खेव-निज्जुत्ति-अणुगमे 3 / से किं तं उवग्घायनिज्जुत्ति-श्रणुगमे ?, 2 इमाहिं दोहिं मूलगाहाहिं अणुगंतव्यो, तंजहा
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