Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 138
________________ श्रीमदनुयोगद्वार-सूत्रम् ] . कम्मधारए अ, तं ण णजइ कयरेणं समासेणं भणसि ?, किं तप्पुरिसेणं किं कम्मधारएणं ?, जइ तप्पुरिसेणं भणसि तो मा एवं भणाहि, यह कम्मधारएणं भणसि तो विसेसो भणाहि, धम्मे असे पएसे श्र, से पएसे धम्मे, अहम्में श्र से परसे अ, से पएसे अहम्मे, श्रागासे अ से पएसे अ, से पएसे अागासे, जीवे श्र से पएसे अ, से पएसे नोजीवे, खंधे श्र से पएसे अ, से पएसे नोखंधे, एवं वयंतं समभिरूढं संपइ एवंभूयो भणइ-जं जं भणसि तं तं सव्वं कसिणं पडिपुराणं निरवसेसं एगगहणगहियं देसेवि मे अवत्थू पएसेवि मे अवत्थू / से तं पएसदिटुंतेणं 3 / से तं नयप्पमाणे 4 / // सू० 145 // से किं तं संखप्पमाणे ?, 2 अट्टविहे पराणत्ते, तंजहा-नामसंखा ठवणसंखा दव्वसंखा श्रोवम्मसंखा परिमाणसंखा जाणणासंखा गणणासंखा भावसंखा 1 / से किं तं नामसंखा ?, 2 जस्स णं जीवस्स वा जाव से तं नामसंखा 2 / से किं तं ठवणसंखा ?, 2 जगणं कठुकम्मे वा पोत्थकम्मे वा जाव से तं ठवणसंखा 3 / नामठवणाणं को पइविसेसो ?, नाम [पाएणं] श्रावकहियं, ठवणा इत्तरिया वा होजा श्रावकहिया वा होजा 4 / से किं तं दबसंखा ?, 2 दुविहा पराणत्ता, तंजहा-श्रागमयो य नोागमश्रो य, जाव से किं तं जाणय-सरीर-भविश्र-सरीर-वइरित्ता दव्वसंखा ?, 2 तिविहा पराणत्ता, तंजहा-एगभविए बद्धाउए अभिमुहणामगोत्ते श्र५ / एगभविए णं भंते ! ऐगभविएत्ति कालो केवच्चिरं होइ ?, जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं पुव्वकोडी 6 / बद्धाउए णं भंते ? बद्धाउएत्ति कालयो केवचिरं होइ ?, जहणणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेगां पुव्वकोडीतिभागं 7 / अभिमुहनामगोए णं भंते ! अभिमुहनामगोएत्ति कालयो केवच्चिरं होइ ?, जहन्नेगां एक्कं समयं उक्कोसेगां अंतोमुहुत्तं 8 / इयाणी को णो कं संखं इच्छइ-तत्थ णेगमसंगहववहारा तिविहं संखं इच्छंति, तंजहा-एगभविगं बद्धाउधे 17

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