Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 14
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 114
________________ श्रीमदनुयोगद्वार-सूत्रम् ] [ 1.5 जहगणेणं अन्तोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिगिण वाससहस्साई 34 / अपज्जत्तगबादरवाउकाइयाणं जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं 35 / पजत्तग-बादरवाउकाइयाणं जहरणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं तिरािण वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई 36 / वणस्सइकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई 37 / सुहुम-बणस्सइकाइयाणं श्रोहियाणं अपजत्तगाणं पजत्तगाण य तिराहवि जहरणेणवि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं 38 / बादर-वणस्मइकाइयाणं जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं दस वाससहस्साई 31 / अपजत्तग-बादरवणस्सइकाइयाणं जहरणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं 40 / पजत्तग-बादरवणस्सइकाइयाणं जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई. 41 / बेइंदित्राणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पराणता ?, गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उकोसेणं बारस संवच्छराणि 42 / अपजत्तग-बेइंदित्राणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणवि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुसं * 43" पजत्तग-बेइंदिश्राणं जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं बारस संवच्छराणि अंतोमुहुत्तूणाई 44 / तेइंदिग्राणं पुच्छा, गोयमा ! जहरानेणं अंतोमुहृत्तं उक्कोसेणं एगुणपराणासं राइंदियाणं 45 / अपजत्तग-तेइंदित्राणं पुच्छा, गोयमा ! जहराणेणवि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं 46 / पजत्तग-तेइंदित्राणं पुच्छा, गोयमा ! जहराणेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं एगुणपराणासं राइंदिवाइं अंतोमुहुत्तूणाई 47 / चउरिंदित्राणां भंते ! केवइयं कालं ठिई पराणता ?, गोयमा ! जहराणेगां अंतोमुहुत्तं उक्कोसेगां छम्मासा 48 / अपजत्तग-चउरिंदित्राणां पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेणवि अंतोमहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं 41 / पजतग-चरिंदिवाणं पुच्छा, गोयमा ! जहन्नेगां अंतोमुहुवं. उक्कोसेणं तुम्मासा अंतोमुहुत्तूणाई 50 / पंचिंदिय-तिरिक्खजोणिप्राणां भंते ! केवइयं कालं टिई पराणत्ता ? गोयमा ! जहर पेणं अंतोमुत्तं उक्कोसेणं 14

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