Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
असंखेज्जइभाग-असरिस
११६,११६,१२३,१२८,१३३,१३६,१३६,
जी०६१४१, १४३,१४६,१४७ १४०; २।१२०,१३१, ३।१६,२१,२६,२७, असंत असत् ] ओ० १६५।१६ ५१,६४,६५,८१,८२,१०,११०,१५५,१६५, असंविद्ध [असन्दिग्ध] ओ० ६६. रा० ६६६ २५७,२५६,३५१,४४५,६३८,७०१,७१०,७३६, असंनिहि । असन्निधि] जी० ३२५६८ ७४७,७६१,७६४,७६८,७६६,७७६ से ७७६, असंपत्त | असम्प्राप्त ] ओ० ४७,८४,८५,८७. रा० ८१४,८३८१,६४०,६४४,६५२,६५३,१००६, ४०,५६, १३२. जी १५८, ७३,७८,८१, १०७३.१०७४,१०८३,१०८५,१०८६,११११, १११५, १८, ६,२२,२३,२६,४१ से ५० असंबद्ध असम्बद्ध जी० ३३११०,१११५
५६,५८, ८१४; ६४०, ५१,६७,१७१,२५७ ।। असंभंत | असम्भ्रान्त ] रा०१२ असंखेजहभाग [असंख्येयतमभाग | रा० ७६६. असंवुड [असंवृत] ओ० ८४,८५,८७
जी० ११६,७४,८६,६४,१०१,१०३,१११, असंसहचरय [असंसृष्टचरक] ओ०२४ ।। ११२,११६,१११,१२१,१२३,१२५,१३०, असंसारसमावण्ण [असंसारसमापन्न] जी ११६ से ६ १३५,१३६; २।२५, ३० से ३४,५३, ५७ से असच्चामोसमणजोग अमत्यमृषामनोयोग] ६१,७३, ६/६७, १८६
ओ० १७८ असंखेज्जगुण [असंख्येयगुण ओ० १८२,१६५।१०. असच्चामोसवइजोग [असत्यमृषावाग्योग] ओ० जी० २१६६, ७१,७२,६५,६६,१३४ से १३६,
१७९ १३८,१४३ से १४६; ३।१६५, ११३८ असण [अशन] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. ४॥२३,२५, ५११८ से २०, २५,२७,३१ से रा०६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६,७८७ ३६,५२,५६,६०, ६११२, ७.२०, २२,२३; से ७८६,७६४ से ७६६,८०२,८०८ ८।५, ६, ७,५५,१००,१२०,१४०,१४७, असणग [अशनक] ओ० १३ १५८,१६६,१८१,१८४,२०८,२२०,२३१, असणि [अशनि] जी० २१७८ २५० से २५२, २५५,२६६.२८६ से २८८, असण्णि [असं शिन् ] जी० १२२४, ८६,६६,१०१, २६०,२६१,२६३
११६,१२८,१३६; ३८८; १०१,१०३, असंखेज्जजीविय [असंख्येयजीविक] जी० ११७१,७२ . १०६,१०८ अखेजतिभाग [असंख्येयतमभाग) जी० २११३९; असति [अपकृत् ] जी० ३११२७.
३१६१, १५६,२१८,४३६,६२६,९६६,१०८६, असब्भावपट्टवणा [असद्भावप्रस्थापना] १०८७,१०८६,११११, ५६, २३,२४,२६ जी० ३.१०६,११८,११६ ९४०, ५१,१७१,१८७,१८८
असब्भावभावणा [असद्भावोद्भावना] असंखेज्जभाग [असंख्येयभाग] ओ० १६२.
ओ०१५५,१६० जी० ३६१
असमोहत [असमवहत ] जी० १।१२८; ३३१५८, असंग [असङ्ग] ओ० २०
१६८, १६६,२०४,२०५ असंघयण [असंहनन | जी० ३११२६४ असमोहय (असमवहत] जी० ११५३,६०.८७ असंघयाणि [असंहनिन् ] जी ० ११६५, १३५; असम्मोह [असम्मोह ] ओ०४३ ३३६२,१०६०
असरणाणुप्पेहा (अशरणानुप्रेक्षा] ओ० ४३ असंजय [असंयत] ओ० ८४,८५,८७,८८. असरिस [असदृश ] जी० ३६११०,१११५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470