Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
पपसि-पंति
२६६
पएसि [प्रदेशिन् ] रा०६७१ से ६७५,६७६ से पंचणउइ [पञ्चनवति] जी० ३१७१४
६८१,७००,७०२ से ७०४,७०८ से ७१०, पंचणउति [पञ्चनवति] जी० ३१७६८ ७१८ से ७२०,७२३ से ७२६,७२८ से ७३४, पंचनउति [पञ्चनवति जी० ३।७६६ ७३६ से ७३६, ७४६ से ७८२,७८६ से ७६१, पंचाणउत [पञ्चनवति जी० ३३६१ ७६३ से ७६६
पंचाणउति [पञ्चनवति ] जी० ३१७२३ पयोग [प्रयोग] ओ० १४,१४१. रा० ६७१,७६१, पंचाणुष्वइय [पञ्चानुवतिक] ओ० ५२,७८ ७९४
पंचिदिय [पञ्चेन्द्रिय ] ओ० १५,७३,१४३,१८२. पओयघर [प्रतोदधर ओ० ५६
रा०६७२,६७३,८०१. जी० २५५२१०१, पोयलट्टि [प्रतोदर्याष्ट] ओ० ५६
११३,१२२.१३८,१४६; ३३१३०,४१,४,६, पओहर [पयोधर] रा० १३३. जी० ३।३०३
६,१०,१५,१६,२४,२५, ८.५६।१ से ३,७ पंक [पङ्क] ओ० ८६,६२,१५०. रा० ८११.
पंचेंदिय पिञ्चेन्द्रिय] जी० ११८३,६१,६७,६८, __ जी० ३,६२३
१०१ से १०३,११६,११७.१२५,१३६; पंकप्पभा [पङ्कप्रभा] जी० ३।३६,४१,४३,४४, २११०४,१०५,१३६,१३८,१४६,१४६ १००,११३
३।१३७ से १४७,१६१ से १६३,१६६,१११५; पंकबहुल [पङ्कबहुल] जी० ३।६,६,१६,२५,३०,
४१६,१८,२०,२१:१५,७,१६७,१६६,२२१,
२२५,२२६,२३१,२५६,२५६,२६०,२६४, पंकरय [पङ्कजस् ] ओ० १५०. रा० ८११ पंकोसण्णग [पङ्कावसन्नक] ओ०६०
पंजर [पञ्जर] रा० १३७. जी० ३०७ पंच [पञ्चन् ] ओ० ५०. रा० २४. जी० ३१३४
पंजलिउड [प्राञ्जलिपुट] ओ० ४७,५२. रा०६०, पंचगिताव [पञ्चाग्निताप] ओ० ६४ ।
६८७,६६२,७१६ पंचम [पञ्चम] ओ०६७,१७४,१७६. जी०
पंजलिकड {कृतप्राञ्जलि ] ओ० ७०
पंडग [पण्डक] ओ० ३७ ३।३३८ पंचमा [पञ्चमी] जी० १६१२३; २११४८,१४६;
पंखगवण [पण्डकवन ] रा० १७३,२७६.
जी० ३२८५,४४५ ३१२,३६
पंडरग (पण्डरक] जी० ३।९६३ पंचमासिय [पाञ्च मासिक] ओ० ३२
पंडिय पण्डित] ओ० १४८,१४६. रा० ८०६,८१० पंचमी [पञ्चमी] जी० ३१४,७४,८८,६१,१६२,
पंड पाण्डु] ओ० ५,८. रा० ७८२. जी० ३।२७४ १११११२
पंडुर [पाण्डुर ओ० १,१६,२२,४७. रा०७२३, पंचविध [पञ्चविध] जी० २११०१,१०२;
७७७,७७८,७८८. जी० ३१५९६ ३३१३० ; ४१२५, ६१४८
पंडुरतल [ हम्मिय] [पाण्डुरतलहH] जी० ३५९४ पंचविह [पञ्चविध] ओ० १५,३७,४०,४२,६६, पंडुरोग [पाण्डुरोग] जी० ३१६२८
७०. रा० २७४,२७५,६७२,६८५,७१०, पंत प्रान्त्य | रा० ७७४ ७३६,७५१,७७४,७७८,७६७. जी० १:५, पंताहार प्रान्त्याहार ओ० ३५ ६६,११८,२.४,१८, ३११३१,४५०,४४१, पंति [पङ्क्ति ] ओ० ६६. रा० ७५,२६७,३०२, ८३८१२१,६७६,४११, ६.१५६,१५८
३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६७,३१८, पंचसयर [पञ्चसप्तति जी० ३१८३८१३१
३५५,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५,५६४,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470