Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 438
________________ संपरिक्खित्ताण-संवृत्त ७४५ ७६८,८१०,१२,८२१,८२३,८३३,८३६, ८४८,८५०,८५६,८६२,८६५,८६८,८७१, ८७४,८७७,८८०,६२५ संपरिक्खिताणं [सम्परिक्षिप्य ] जी० ३।४८ संपरिखित्त सम्परिक्षिप्त | रा०४०,१८६,१६१ २०५ से २०८ संपरिवुड [गम्परिवृत] ओ० १८,१६,६३,६८, ७०. रा०९,१३,४७,५६,५८,१२०,२६१, ६५७,६८३,६८६,७११,७५४,७५६ ७६२, ७६४,७७७,७७८,८०४. जी० ३१४५७,५५७, १०२५ संपललिय | सम्प्रललित] ओ० २३ संपलियंक [सम्पर्य] ओ० ११७. रा० ७६६.. जी० ३१८६६ संपविट्ठसम्प्रविष्ट] रा० ७६५ संपाविउकाम | सम्प्राप्तुकाम | ओ० १६,२१,५४, ११७. रा०८ संपिडिय | सम्पिण्डित] ओ०६. जी० ३२७५ संपुच्छण [सम्प्रश्न ] जी० ३।२३६ संपुड [सम्पुट ] जी० ३१७६३ सिंह [सं+ प्र+ईक्ष् ]-संपेहेइ. रा०६ संहिता [सम्प्रेक्ष्य] रा०६ संयेहेत्ता सम्प्रेक्ष्य ] रा० ६८८ संबंषि सम्बन्धिन् ] जी० १५०. रा० ७५१,८०२ संभिग्णसोय [ सम्भिन्नस्रोतस् ] ओ० २४ संभोग [सम्भोग] ओ० ४० संमज्जण [सम्मार्जन] रा० ७७६ संमज्जिय [सम्मार्जित रा० २८१,८०२ संमट्ट सम्मृष्ट ! रा० २०१ | संमय [सम्मत | ओ० ११७. रा० ७६६ V संमुच्छ |सं--- मूच्र्छ ।- समुच्छंति. जी० ३.१२७ संमुच्छिम [सम्मूच्छिम, सम्मूर्छनज] जी० १।६६ से ६८,१०१ से १०५,११२,११,१२६ से १२८ ; ३११३८,१३६,१४२,१४५ से १४७, १४६,१६१,१६३,१६४,२१२ से २१४ संमुहागय | सम्मुखागत ] जी० ३।२८५ संलख [संलब्ध] रा०७६८ संलाव | संलाप] आं० १५. १०७०,६७२. जी० ३१५९७ संलेहणा | संलेखना] ओ० ७७,११७,१४०,१५४ संवच्छर [संवत्सर] जी० ११८७; १९७; ३.८४१,४।४ संवच्छरपडिलेणग [संवत्सरप्रतिलेखनक] रा० ८०३ संवट्ट [सं+वर्तय् ] --संवटेइ. ओ० ५९ संवट्टगवाय [संवर्तकवात] जी० १११ संवट्टयवाय [संवर्तकवात ] रा० १२ संवदे॒त्ता [संवर्त्य ] ओ० ५६ संवड्डिय [संबंधित] रा० ८११ संबर | मवर] औ० ४६,७१,१२०,१६२. रा०६९८,७५२,७८६ संवाह (संवाह ] ओ०६८ संविकिपण संविकीर्ण] रा० ३२,२०६,२११. जी० ३।३७२ संविद्धणित्ता [संविधूय ] ओ० २३ संवड [ संवृद्ध | ओ० १५०. रा० १११ संवुत संवृतजी० ३।४०७ संवत्त [संवृत्त] रा० ७७१ संबद्ध [सम्बद्ध] जी० ३.११०,१११५ संबाह सम्बाध | ओ०८६ से १३,६५,६६.१५५, १५८ से १६१,१६३,१६८. रा०६६३ संबाणा | सम्बाधना । ओ०६३ संबाहिय [सम्बाधित | ओ० ६३ संबुद्ध [सम्बुद्ध] रा० ७७५ संभम | सम्भ्रम] ओ०६७. रा० ५,१३,६५७, ७१४. जी० ३१४४६ संभार (सम्भार] जी० ३१५८६ संभिषण [ सम्भिन्न ] जी० ३१११११२३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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