Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 439
________________ संवय | संवृत] रा० ३७,२४५. जी० ३।३११ संग | सवेग ओ०६९ संवेयणी [संवेदनी ओ० ४५ संवेल्लित [दे०] जी० ३१३०३ संवेल्लिय | दे०) रा० ६६,७०,१७३ संसट्टचरय संसृष्टच रक] अ० ३४ संसत्त संसक्त] ओ० ३७. जी. ३१८४ संसार | संसार ] ओ० २६,४६,१६५ संसारअपरित्त (संसारापरीत ] जी०६७६ संसारपरित्त [संसारपरीत। जी. ७६,७८,८४ संसारविउस्सग्ग [ संसारव्युत्सर्ग] ओ० ४४ संसारसमावण्ण [संसारसमापन्न | जी० ११६,१० संसारसमावष्णग संसारसमापन्नक] जी० १११०, ११,१४३; २।१,१५१ ; ३११,१८३,११३८; ४११,२५, २१,६०, ६.१,१२,७११,२३; ८.१,५; ६।१.७ संसारसमावण्णय संमारसमापन्नक] जी० १११० संसाराणुपेहा [संसारानुप्रेक्षा] ओ० ४३ । संसारापरित्त [संसीरापरीत] जी०६।८१,८६ संसुद्ध [संशुद्ध] ओ० ७२ इससेय [सं+ स्विद् ! --संसेयंति. जी० ३३७२६ संहत [संहत] जी० ३।५६७ संहरण [संहरण] जी० २१३० से ३४,५७ से ६१, संवुय-सची सक्कय [ संस्कृत ] जी. ३ ५६५ ।। सक्करप्पभा [शर्कराप्रभा] जी० २१०० ३।४, ११,२०,२१,२७,३१,३२,३४,४०.४३,४४,४६, ६८,१०७ सक्करा शर्क] रा० ६,१२. जी० ३।६०१, ६२२ सक्करापुढवी [शर्करापृथ्वी ] जी० ३।१८५,१६० सिक्कार मित्+कृ] ...सक्कारिस्पति रा०७०४ --- सक्कारेइ. ओ० २१. रा०६८४ ---सरकारेज्जा. रा०७७६ -- सक्कारेमि. रा० ५८ ----सक्कारेमो. ओ० ५२. रा०१०.-सक्कारेस्संति. रा० ८०२. -सक्कारेहिति. ओ० १४७ सक्कार | मत्कार, ओ० ४०,५२. रा०१६,६८७, ६८६,८०३,८०५. जी. ३१६०६ सक्कारणिज्ज [स कारणीय] ओ० २. रा० २४० २७६. जी० ३।४०२,४४२ सक्कारित्तए [सत्कर्तुम् ] ओ० १३६. रा०६ सरकारेत्ता [सत्कृत्य ] ओ० २१ सक्कुलिकण्ण [शष्कुलिकर्ण] जी० ३१२१६,२२५ सक्कुलिकण्णदीव [शष्कुलिकर्णद्वीप] जी० ३१२२५ सग स्वक] जी० ३१७६८,७६६,७७२,७७३,७७६ से ६७६,११११ सगड [श कट] ओ० १००,१२३. जी. ३१२७६, ५८१,५८५,६१७,६३१ सगडवूह [राकटब्यूह] ओ० १४६. रा०८०६ सगल [सकल | जी० ११७२, ३।५९२ सगल [शक] जी० ३१५६६ सगेवेज्ज [सगवेय] १० ७५४,७५६,७६४ सग्ग [स] ओ०६८ सचित्त सचित] ओ० २८,४६,६९,७०. रा. संहित' [संहित] जी० ११७२१३; ३१५६६,५६७ संहिय [संहित] रा० १७३. जी० ३४५६७ सक [स्वक] ३१७६५,७७० । सकक्कस [सकर्कश ओ० ४० सकसाइ [सकपायिन् ] जी० ६३२८ सकाइय [सकायिक] जी०६।१८ से २० सकिरिय [सक्रिय] ओ० ४०,८४,८५,८७ सक्क [शक] जी० ३१६२०,९२१,६३७,१०३६ से १०४२,११११ १. संहितौ- मध्यकायापेक्षया विरली ७७८ सिचित्तीकर [ सचित्तीकृ]- सचित्तीकरेइ. रा० ७७२ सची [शची] जी० ३१९२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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