Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 459
________________ सुरभिगंध-सुसिर सुरभिगंध [सुरभिगन्ध] रा० ६,१२ सुदामरुप्पामय [सुवर्णरूप्यमय] रा० १६,१५३, सुरम्म {सुरम्य ] ओ० १,६ से ८,१०,१३. १६०,२३५,२३६,२४०,२७५,२८०. रा० २२,३७,२४५. जी० ३।२७५,२७६, जी० ३।२६४,२८७,३२६,३६७,३६८,४४५ ३११,३८६,४०७,५८१,५८५ सवण्णागर | सुवर्णाकर रा० ७७४. जो० ३.११८ सुरवर [सुरवर] रा० ८,६,१२ सुवयण [सुवचन] ओ० ५२. रा० ६६७,६८७ सुरस | सुरस] जी० ३१६८०,६८६ सुवासित [सुवासित ] जी० ३१८७८ सुरहि । सुरभि] ओ० ६३. जी० ३१६७२ सुविणीय [सुविनीत] रा० ७६ से २१ सुरा [सुरा] जी० ३१५८६ सुविभत्त {सुविभक्त] ओ० १,५,८,१०,१६. सुरूव [सुरूप] ओ०१५,४७ से ५१,१४३. ग० ३२,१४५. जी० ३१२६८,२७४,३७२, रा० ५३,६७२,६७३,८०१. जी० ३।२६०, ५६६,५६७ ६७८,६८४ सुविरइय [सुविरचित रा० ३७,२४५. सुरुवग [सुरूपक जी० ३५९६ जी० ३।४०७,५६६,५६७ सुरूवत्त [सुरूपत्व] जी० ३६८४ सुविरचित { सुविरचित] जी० ३१३११ सुलभबोहिय [सुलभबोधिक] रा० ६२ सुविहि सुविधि] जी० ३६५६४ सुललिय [सुललित] रा० १७३. जी० ३१२८५ सुव्वत्त { सुव्यक्त] ओ० ७१. रा० ६१ सुवण्ण | सुवर्ण] ओ० २३,५२,६३. रा० ४०,१३२, सुव्वय [ सुबत] ओ० १६१,१६३ १७४,२८१,६८७ से ६८६. जी. ३१२६५, सुसंपउत्त [सुसम्प्रयुक्त] ओ० ४६,६४. रा० ७६, २८६,३०२,३१३,४४७,६०८,८४०,८८५, १७३,६८१. जी. ३१२८५,५८८ ११२२ सुसंपग्गहित [सुसम्प्रगृहीत ] जी० ३१२८५,३०२ सुसंपग्गहिय [सुसम्प्रगृहीत] ओ० ६४. रा० १३२, सुवण्ण [सुपर्ण] मो० ४८,१२०,१६२. रा०६६८, १७३ ७५२,७८६. जी० ३१२३२ सुसंपरिंगहित [सुसम्परिगृहीत | जी० ३।२८५ सवण्णकला [सुवर्णकूला रा० २७६. जी० ३१४४५ सपरिग्गहिय [सुसम्परिगृहीत] रा० १७३.६८१ सुवण्णजुति [सुवर्णयुक्ति] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसंपिणद्ध [सुसंपिनद्ध] रा० १७३,६८१ सुवण्णजूहिया [ सुवर्णयूधिका] रा० २८. सुसंभास [सुसंभाष] ओ० ४६ ___ जी० ३१२८१ सुसंवय [सुसंवृत] ओ०६३ सुवण्णदार [सुपर्णद्वार] जी० ३१८८५ सुसंहय ! सुमंहत] ओ० १६ सवण्णपाग [सुवर्णपाक] ओ० १४६. रा० ८०६ सुसस्कय [सुसंस्कृत] जी० ३।५९२ सुवण्णमणिमय [सुवर्णमणिमय] रा० २७६,२८०. सुसज्ज [ सुसज्ज] ओ० ५७. रा० ५३ जी० ३१४४५ सुसमाहिय [सुसमाहित] ओ० ३७ सुवण्णरुप्पमणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय ] रा० २७६, सुसवण [सुश्रवण ] जी० ३१५६६ २८०. जी० ३१४४५ सुसव्व [सुगर्व] रा० १५२. जी० ३३२५ सुवण्णरुप्पमय [सुवर्णरूप्यमणिमय रा० १७५. सुसामण्णरय सुश्रामण्यरत ] ओ० २५,१६४ जी० ३.४०२,६०२ सुसाहत सुसंहत] जी० ३।५६६ सवण्णरुप्पामणिमय [सुवर्णरूप्यमणिमय] सुसिणिद्ध [सुस्निग्ध] जी० ३।५९७ जी०-३२४४५ सुसिर शुषिर] रा० ११४२८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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