Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पचकमणग पन्चोत्तर
पचकमण [ प्रचंक्रमणक] रा० ८०३
~ पच्चक्ख, क्खा [ प्रति + आ + ख्या ] पच्चक्खति ओ० १५७ -- पच्चक्खामि रा०७६६ _पञ्चक्खामो. ओ० ११७ पृच्चक्खा इस्सइ. रा० ८१६
पच्चक्खाण [ प्रत्याख्यान ] ओ० १२०, १४०, १५७. रा० ६६८, ७५२, ७८७,७८६
पच्चक्वाय { प्रत्याख्यात ] ओ० ८४,८५,८७,८८, ११७,१२१,१३६ रा० ७६६ पच्चखित्ता | प्रत्याख्याय | ओ० १५७ पञ्चणुभवमाण [ प्रत्यनुभवत् ] १० १८५, १८७, ७५१. जी० ३१०६, ११८, ११६, १२२, १२३, २१७,२१७, २६८,५७६ पच्चणुभवमाण [ प्रत्यनुभवत् ] ओ० १५.
रा० ६७२,६८५, ७१०,७७४. जी० ३।११६, ११८,११६,१२८, ३५८, १११४, १११७, १११८, ११२४
पच्चत्थिम [ पाश्चात्य ] रा० ४३, ४४, १७०, २३५, २३६,२४४,२४६,६६३,६६४. जी० ३।३००, ३४४,३४५,३६७,३६८, ४०६, ४१०, ५६१, ५६२, ५६८,५७७,६३२,६६१,६६६, ६६८, ६७३,६८२,६६३,६६४,६६७, ६६८,७०८, ७१२,७४२,७४४,७५४,७६१, ७६५, ७६८, ७६६,७७१ से ७७३,७७६,७७८,८००, ८१४ ८२५,८५१,८८२, ८८५६०१,६३६,६४०, ६४४,१०१५
पचत्थिमिल्ल [ पाश्चात्य ] रा० २६६, २६७,३०१, ३०६,३१७,३२२,३२७, ३३५,३४०, ३४५. जी० ३।३३,२२०, २२१, २२४, २२५,४६१. ४६६,४७१, ४८२,४८७, ४६२, ५००, ५०५, ५१०,५७७,६७३,६६५ से ६६७,७६६,७७१, ७७३,७७५ ७७७, ६१५
पच्चत्थु [ प्रत्यवस्तृत ] रा० ३७ / पच्चप्पिण [ प्रति + अर्पय् ] - पञ्चपिणइ. ओ० ५७ – पच्चपिणंति. रा० १२. जी० ३।५५५ - पच्चप्पियति. रा० ४६
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-- पच्चपिणह. रा० ६. जी० ३।५५४ - पच्चप्पिणाहि ओ० ५५. रा० १७ - पच्च पिणेज्जा. ओ० १५०
६६६
-- पच्चष्पिणेज्जाह रा० ७०६ पच्चमाण [ पच्यमान | जी० ३।१२६८ पच्चामित [ प्रत्यमित्र ] ओ० १४. रा० ६७१. जी० ३१६१२
/ पच्चाया [ प्रति + आ + जन् ] - पच्चाइस्सइ. रा० ७६७ - पच्चायति. ओ० ७१. जी० ३१५७२ – पन्चायाहिति. ओ० १४१. पचावड [ प्रत्यावर्त ] रा० २४. जी० ३।२७७ पच्चष्णम [ प्रति । उत् + नम् ] – पच्चु॰णमइ ओ० २१. रा० २६२ ---पच्चुष्णमति. जी० ३१४५७
पच्चमित्ता [ प्रत्युन्नभ्य ] ओ० २१. रा० २६२. जी० ३।४५७
पच्चुत्तर [ प्रति + उत् + तृ] - पच्चुत्तरति. जी० ३१४४३ – पन्चुत्तरेइ. रा० ६५६जी० ३।४५४ पच्चुत्तरिता [ प्रत्युत्तीर्य ] जी० ३१४४३ पच्चुत्तरेता [ प्रत्युत्तीर्य ] रा० ६५६. जी० ३०४५४ पच्चुत्थत [ प्रत्यवस्तृत ] जी० ३।३११ पच्चुद्धर [ प्रति + उ + धृ ] - पचचुद्ध रिस्सामि जी० ३।११८
पच्चरित ए [ प्रत्युद्धर्तुम् ] जी० ३।११८ पच्चन्नम [ प्रति + उत् + नम् ] -- पच्चुन्नमइ.
रा०८
पच्चन्नमित्तर [ प्रत्युन्नम्य ] रा०८ पच्चसकाल [ प्रत्यूषकाल ] जी० ३।२८५ / पच्चुवेक्ख [ प्रति । उप + ईक्ष् ] – पच्चु वेक्वे इ. ओ० ५६
पच्चुवेक्खमाण [ प्रत्युपेक्षमाण ] रा० ६७४,६८०, ६६८
पच्चवेक्ता [ प्रत्युपेक्ष्य ] ओ० ५६ पच्चोणिवयंत [ प्रत्यवनिपतत् ] ओ० ४६ पच्चोत्तर [ प्रति + उत् + तु ] – पच्चोत्तरइ. रा० २७७- पच्चोत्तरति रा० २८०
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