Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 426
________________ वासंतीमंडवग-विक्खंभ ७३३ वासंतीमंडवग [वासन्तीमण्डपक] जी० ३।२९६ वासधर वर्षधर रा० २७६. जी० ३।२१७,२१६ से २२१,२२७,४४५,६३२,६६८,७६५,८४१, ६३७ वासपरियाय [वर्षपर्याय] ओ० २३ वासवद्दलय [वर्षबादलक] रा० १२३ वासहर [वर्षधर रा० २७६. जी० ३,४४५, ७७५,७६५ वासा [वर्षा] रा० ६,१२ वासावास [वर्षावास ओ० २६ वासिक्क [वार्षिक] रा० १६७. जी० ३।२६६ वासित्ता [वषित्वा) रा०२० वासी [वासी ] ओ० २६ वासुदेव [वासुदेव [ ओ० ७१. जी० ३।७६५, वासेत्ता [वर्णित्वा] रा ० २० वाहण [वाहन ] ओ० १४,२३,५२,५६,६६,१४१. रा०६७१,६७४,६७५,६८७,६६५,७८७,७८८ ७६०,७६१,७६६ वाहणसाला [वाहनशाला] ओ० ५६ वाहणा | उपानह.] ओ० ११७ वाहा बाहु] जी० ३१५६७ वाहि [व्याधि ] ओ० ७४१२. जी० ३।१२८, ७००,७०२,७०४,७०८,७०६,७१४,७१६, ७६५,७७४,७७६,७८७,७८८,७६६८०२, ८०८,८१०,८११. जी. ३३११०,११७,२७४, ३७२,४६१,४६२.४६५,४७०,४७७,५१६, ५२०,५६६ विउलकयवित्ति विपुलकृत वृत्तिक] ओ० १६ विउलमइ (विपुलमति ओ० २४. रा० ७४४ (विउव्य वि-+] - विउव्वइ. रा० ३२. --विउव्वति. रा०१०. जी०३।११०. -विउन्वति. रा० १६.---विउव्वाहि. रा० १७. —विउब्बिसु. जी० ३३१११६.-विउविस्मति. जी० ३३१११६ विउम्पिपिडिपत्त [विक्रियद्धिप्राप्त ] ओ० २४ विउव्वणा [विकरण ] जी० ३११२७।४,१२६२ से ४ विउम्बित्तए [विकर्तुम् ] जी० ३.११० विउम्वित्ता विकृत्य] रा० १० जी० ३।११० विउम्विय [विकृत] ओ० ४६ विउठवेमाण {विकुर्वाण ] जी० ३१११०,१११५ विउस्सग्ग [ व्युत्सर्ग ओ० ३८,४३,४४ विउस्सापारिह | पुत्सहि ] ओ० ३६ विओग | वियोग] ओ० ४६ विओसरणयाँ व्युत्सर्जन] ओ०६६,७०. रा. ७७८ विद वृन्द] स०६८३. जी० ३१५८६ विहणिज्ज वृंहणीय] ओ०६३ विकच्छसुत्तग वैकक्षसूत्रक] रा०२८५ विकल्प [विकल्प] ओ० ५७. जी० ३१५६४ विकिट्ठ । विकृष्ट ओ० १. रा०६८३ विकुस विकुश ] ओ०८,१०. जी ० ३.३८६,५८१ ___से ५८३, ५८६ से ५६५ विक्कम विक्रम | ओ०१६,२३. जी० ३१७६, १७८,१८०,१८२,५९६ विक्किरिज्जमाण [विकीर्यमाण | रा० ३० विक्खंभ [विष्कम्भ] ओ० १३,१७०,१६२. रा० ३६,१२४,१२६ से १२६,१३७.१७०, १८६,१८८,१८६,२०१,२०४ से २१२,२१८, वाहित [ व्याहृत] जी० ३।२३६ वि अपि ओ० ६७. रा० २७६ विअदृच्छउम [विवृत्तछद्मन् ] जी० ३।४५३ विइय द्वितीयj ओ० १८२ विउक्कम [वि-+-उत्+क्रम् ]-विउक्क मंति. जी० ३८७ विउल विपुल | ओ० १,२,५,८,१४,१६,२३,४६, ५२,५५,६८,१४१,१४७,१४६,१५०. रा०७, १५,३२,२२८,२७८,२७६,२८१,२६१,२६४, २६६,३००,३०५.३१२,३५५,६७१,६७५, ६८०,६८१,६८३,६८४,६८७,६६५.६६६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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