Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 397
________________ ७०४ भोमिज्ज-मंति ३४५,३५५,३५६ २४१,२४८,२५०,२५६,२६१. जी० ३१२८६, भोमिन्ज [ भौमेय] 1० २७६,२८० ३१४,३४७,३५९,३६७ से ३७१,३.५ ३७६, भोमेज्ज [भौमेय] जी० ३३२५१,२५२ ३:२,३६१,३६४,४०३.४११,४२०,४२४, भोय भोग | ओ० १५. रा०६८५,७१०,७७४ ४३० ४१३,४६६६३६,६५१,६७७,७०८, भोय भोजय]--भोयावेज्जा. मा० ७७६ ७१.६,८८८,८६२,८६४,८६८,६००,६०६६१३ भोयण भोजन ओ० १३५, १९५१८. मंगलय | मङ्गक ! ओ० ६४. जी. ३१३५५,४५७ जी० ३१६०२ मंगल्ल माङ्गल्य रा०६८५,६६२,७००,७१६, भोयणमंडव (भोजनमण्डप रा० ८०२ ७२६,८०२ मंचाइमंच | मानिमञ्च ओ० ५५.१० २८१ मंचातिमंच मजातिमञ्च जी० ३१४४९७ मइ [मति ] ओ० ४६,५७ मंजरि जरी ओ० ५,८,१०. र. १४.. मइअण्णाणि मत्यज्ञानिन् ] जी० ११३०, ८७,६६; श्री० ३१२६८,२७४ ६२०२,२०६,२०८ मंजु, मञ्ज ओ०६६. स.० ५३५.० ३.३०५, मउ | मृदु । रा०७६,१७३ मउंदमह । मुकुन्दमः०६८८ मंड [ग]...-मंडावेज्जा. रा० ७७६ मउड [मुकुट] आ० २१,४७,४६ से ५१,५४,६३, मड मण्ड] जी० ३१८७२,६६० ६५,७२,१०८,१३१. रा०८,२८५,७१४. मंडणधाई मानधात्री] र० २०४ जी० ३१४५१,५६३ मंडल [मण्डल] अं० ५०,६४. रा० १४६. जी. मज्य [ मृटुक] ओ० १६. रा० २८८.जी० ११५०; ३३३२२,८३८११० से १२ ३२२,२८५,३८७,५६६,५९७,६७२,१०६८ मंडला मण्डलक] १०२६५. जी० १४६० मडल [मुकुल ] जी० ३:५६७ मंडलपविभत्ति [मण्डलप्रविभक्ति ग०६० मजलि [ मुकलिन जी० १११०६,१०८ मंडलरोग [मण्डलरोग जी० ३।६२८ मउलि [मौलि ओ० ४७,७२ मंडलिय माडलिक जी० ३३१२६११ मलिय । मुकुलित ] ओ० २१,५४. रा ७१४ मडलियावाय [ मालिक वात! जी० १८१ मऊर { मयूर] जी० ३४५६७ मंडव मण्डप जी० ३।५६४,८६३ मंख मङ्ग] ओ० १,२ मंडवग [माडपक ०६ से ८,१०. जी. अंखपेच्छा [मप्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. ३१२७५,५०६ जी० ३।६१६ मंडवय | मण्डपको जी०३:५७६,८६३ मंगल मिल] ओ० २.१२,२०,५२,५३,६३,६८, मंडित मण्डित जी० ३.२८५,३०२,४४७ ७०, १३६. ग० ६,१०,४६,५८,१५६,२४०, मंडियमण्डित। ओ०२,४७,५५.५६, रा. २७६,२६१,६८३,६८५,६८७ से ६८६, ६६२, २८१. जी० ३ २६५,३१३ ७००,००४,७१६,७१९,७२६,७५१,७५३, मंडिया पण्डितक | M० १३२ ७६५,७७६,७६४,८०२,८०५. जी. ३.३३२, मंडियागमण्डि क] रा०४० ४०२,४४२ मंत ओ० २५. रा०६७५,६८६,७६१ मंगलग गङ्गलक] रा० २१,१६६,१७७,२०२, मंति मन्धिन् । .. १८. रा० ७५४,७५६,७६२, २०४ से २०८,२१४,२२०,२२३,२२६,२३२, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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