Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 414
________________ ७२१ रोतिया(पाय)-रोग रोतिमा (पाय) [रीतिकापात्र ] ओ० १०५, १२८ रीतिया (बंधण) रीतिकाबन्धन] ओ० १०६,१२६ रुइ रुचि रा० ७४८ से ७५०,७७३ रुहर | रुचिर | जी० ३१५६६,६७२ रुइल | रुचिर अं० ५,८,१६. ०२२८, जी. ३१२७४,३८७,५६६,५६७ रुंद (दे० विस्तीर्ण ओ० ४६ रुक्ष (रूक्ष रा० ७८२, जी० ११६६,७०,७२, ३१५८१,६०३,६०४,६३१.६७६,६३७ रुक्खगेहालय [ रूक्षगेहालय ] जी० ३१६०३,६०५ रुक्खमह रूक्षमह] रा० ६८८. जी० ३१६१५ ।। रुक्खमूल [रूक्षमूल | ओ०८,१०. जी. ३३३८६, ५८१ से ५८३,५८६ से ५६५ रुक्खमूलिय रिक्षम लिकओ०६४ रुचिजमाण [रुच्यमान ] जी० ३।२८३ रुद्द रौिद्र] ० ६७१ रुद्द (साण) रौद्रध्यान] ओ० ४३ रुद्दमह [रुद्रमह] रा० ६८८. जी० ३६१५ रुप्पकूला रूप्यकला रा०२७६. जी० ३४४५ रुप्पच्छद रूप्यच्छद जी. ३३३३२ रुप्पपट्ट रुप्यपट्ट | रा०२२,२६. जी. ३:२८२, २१० रुप्पमणिमय रूप्यमणिमय रा० २७६,२८० रुपमय { रूप्यमय रा० १५६,२७६.२८० रुप्पागर रुप्यापर| रा० ७७४. जी. ३१११८ रुप्पामणिमय [ रूप्यमणिमय जी० ३.४४५ रुप्पामय रूप्यमय जी० ३:४४५,४४६ रुपि रुक्मिन् ] रा० २७६. जी० ३१४४५, रुयमवरमहामह रचावरमहाभद्रजी० ३१६३४ रुपगवरोभास [रुचवरावभा० ३१६३४ रुयगवरोभासभ६ सिवरावभासमद्र] जी० ३।६३४ रुयगवरोभासमहाभद्द [रु कवरावभास महाभद्र | जी० ३९३४ रुयगवरोभासमहावर रुचकरराव भार महावर ] जो० ३।६३४ रुयगवरोभासवर [रुचकवरावभासवर जी० ३.६३४ रुयय रुचक ओ० १६. जी० ३६३४ रुरु | रुरु] ओ० १३. स. १७,१८,२०,३२,३७, १२६. जी. ३.२८८,३००,३११,३७२ रुहिर [ रुधिर] रा० २७. जी० ३.२८० रूत रूत] जी० ३।४०७ रूय | रूत | ओ० १३. रा० ३१,३७,१८५,२४५. _जी० ३।२८४,२९७,३११ रूव [ रूप] ओ०१५,२३,४७,६३,७२,१४६,१६१, १६३,१६२. रा० १०,४७,५४,६६,७०,७६, १७३,१६०,६७२,६८५,७१०,७५१,७७१, ७७४,८०६,८०६८१०. जी० २११५१; ३१११०,१११,२६४,२८५,५६०,५६४,५६६, ५६७,९८२,१११५,१११७,११२४ रूवग [रूपक ! २.० १७,१८,२०,३२,१२६,१३२. जी० ३.२८८,३००,३७२ रूवसंपण्ण रूपसम्पन्न आं० २५. रा०६८६ रूवि रूपिन् | रा० ७७१. जी. ११३,५ रेणु | रेणु रा० ६.१२,२८१. जी० ३।४४७ रेयग रेवक स० ७६ रेरिज्जमाण राराज्यमान रा० ७८२ रोइयाबसाण | रोचितावसान] रा० ११५,१७३, २८१. जी. ३१४४७ रोएमाण रोचमान जी० १११ रोचियावसाण रोचितावतान ओ० ३.२८५ रोग रोग ओ० ४६,११७. रा० ७६६. जी० ३.६२८,६३१ ७६५ रुयग! रुचक ओ० ४७. जी० ३१५९६,५६७, ७७५,६४२,९५२ रुयगवर रुचकवर जी० ३१६३४ रुषगवरभद्द रुचकवरभद्र जो० ३१६३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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