Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 411
________________ ७१८ रत्तरयण-रयणामय रत्तरयण [रक्तरत्न ] ओ० २३ रयण [रत्न ओ० २३,४७,४६,६३,६४. रत्तबई [ रक्तवती] रा० २७६ रा० १०,१२,१७,१८,३२,३७,४०.५१,६५, रत्तवती [ रक्तवती] जी० ३।४४५ ६६,७०,१३०,१३२,१३७,१६०,१६५,२२८, रत्ता [ रक्ता] रा० २७६. जी० ३१४४५ २५६,२७६,२८१,२८५,२६२,६६५,७७४. रत्तासोग रक्ताशोक] ओ० २२. रा०२७,७७७, जी० ३७,२४६० से ६३,२६५,३००,३०२. ७७८,७८८. जी० ३१२८० ३०७,३११,३३३,३४६,३५७,३७२,३८७, रत्ति [रात्रि] रा० ४५ ४१७,४४५,४४७,४५७,५८७,५८६,५६०, रत्तुप्पल [रक्तोत्पल] ओ० १६. रा० २७. ५६३,६७२,७७५,६३६,६३७ जी० ३।२८०,५६६,५६७ रयणकंड [रत्नकाण्ड | जी० ३१८,१५,२० रत्था [ रथ्या] ओ० ५५. रा०२८१. रयणकरंडग [रत्नकरण्डक] ओ० २६. २० १५४, जी० ३४४७ २५८,२७६,७५० से ७५३. जी० ३।३२७, रथ [रथ ] जी० ३१८६ ४१६,४४५ रद्ध [राद्ध] जी० ३१५६२ रयणकरंडय [ रत्नकरण्डक ] रा० १५४. रम रिम् ] --- रमंति. ग०१८५. जी. ३२१७. जी० ३१३२७ ----रमिज्जइ. रा० ७८३ रयणकरंडा [रत्नकरण्डक] जी० ३।३५५ रमणिज्ज [रमणीय] ओ० १६,४७,६३,१९२. रयणजाल [रत्नजाल ] रा० १६१. जी० ३।२६५ रयणप्पभा [ रत्नप्रभा] रा० १२४. जी० १९२ रा० २४,३३,३५,६५,६६,१२४,१७१,१८६ २११००,१२७,१३५,१३८,१४८,१४६, ३१३, से १८८,२०३,२०४,२१७,२३७,२३८,२६१, ५ से १,१२ से १९,२२ से २६,२६,३०,३३, ७८१ से ७०७. जी० ३.२१८,२५७,२७७, ३७ से ३६,४२,४४,४५,४७ से ५७,५६ से ३०६,३१०,३३६,३५६ से ३६१,३६४,३६५, ३६८,३६६,३६६,४००,४२२,४२७,५८०, ६५,७३,७६ से ७८,८०,८१,८३ से १८,१०३ से ११०,११२,११६,१२० से १२४,१२६ से ५६६,५६७,६२३,६३३,६३४,६४५,६४६, १२८,२३२,२५७,१००३,१०३८,१०३६, ६४८,६४६,६५६,६६२,६६३,६७०,६७१, ६७३,६६०,६६१,७३७,७५५ से ७५८,७६८, ___ रयणप्पहा [रत्नप्रभा | ओ० १८६,१६२. ८८३,८८४,८६०,६०५,६०६,६१२,६१३, जी० १११०१:२११३५ १००३,१०३८ रयणभार [रत्नभार] रा०७७४ रम्म [रम्य ] ० ४,६. रा० १७०,१७३,६७०, रयणभारय [ रत्नभारक] रा० ७७४ ७०३,८०४. जी० २२७३,२७५,२८५,५६१ रयणमय रिलमय जी० ३१७४७ रम्मगवास [म्यक वर्ष ] रा० २७६. जी० २।१३, रयणा [रला] जी० ३५६७ से ७२,६२२ ३२,५६,७०,७२,६६,१४७,१४६; ३१२२८, रयणागर [रत्नाकर] रा० ७७४ रयणामय [रत्नमय] ० १२. रा० २१,२३,३८, रम्मयवास [रम्पकवर्ष] जी० ३।७६५ १२४,१२५,१२७,१२८,१३१,१३४,१४१, रय रजस् ] ओ० २३. रा०६,१२,२५१. १४५,१४८,१५१,१५२,१५५ से १५७,१६०, जी० ३।४४७,५६८ १६१,१८० से १८५,१६२,१९७,२२२,२५३, रय रय] लो० ४६ २५६,२५७,२७२. जी० ३।२६२,२६३,२६६, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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