Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 371
________________ परिक्खेव-परिभव परिक्खेव [परिक्षेप] ओ० १७०. रा० १२४,१२६, ५१८ १८८,१८६,२०१. जी० ३।५१,८१,८२,८६, परिणम | परिणम् - परिणमइ, ओ० ७१. १२७, २१७, २२२, २२६१३ से ६, २६०, रा० ७७१ -परिणमंति, जी० १६५ २६३, २७३, २६८,३५१, ३६१, ३६२,५७७, परिणमंत | परिणमत् ] रा०७७१ ६३२, ६५८, ६६१, ६६८,६८६, ७०६,७३६, परिणममाण [परिणमत्] जी० ३१९८२ ७५४, ७६२, ७६५, ७७०,५६४, ७६५,७६८, परिणय [परिणत] ओ० ५,८. रा० १२,७५८,७५६ ८१२, ८२३, ८३२, ८३५, ८५०,८८२,६११, ८०६,८१०. जी० ११५; ३,२२,११८,२७४,५८६ ६१८, ६५२,१०१० से १०१४,१०७३,१०७४ ५८८ से ५६२,५६४ । परिखित्त | परिक्षिप्त ] ग० ५६, १७३, ६८१. परिणाम [परिणाम | ओ०७१,१०,११६,१५६. रा० जी० ३२२८५ १३३. जी. ३।१२८,३०३,५८६,५८८,५६२, परिगत [परिगत] जी० ३।२८८, ३००, ३३२ ६७४,६७६ से १८२ परिगय [परिगत ] ओ० २ रा० १७, १८, २०, परिणाम [परि। णामय ] ...परिणामेइ. रा०७३२ ३२, १२६, १५६, ७६५. जी० ३।३७२ अपरिणिवा | परि-- निर+बा]-परिणिबाइ.ओ. परिग्गह [परिग्रह ] ओ०७१, ७६, ७७, ११७, १७७-परिणि व्वायंति. ओ०७२. जी० १११३३ १२१, १६१, १६३. रा० ६६, ७१७, ७६६ ...-परिनिवाहिति. ओ० १६६ --परिणिबा. परिग्गहवेरमण [परिग्रहविरमण | ओ० ७१ हिति. ओ० १५४ परिग्गहसण्णा [परिग्रहसंज्ञा] जी० ११२०; ३।१२८ परिणिन्वाण [ परिनिर्वाणj ओ० ७१ जी० ३।६१५ परिगहिय [परिगृहीत] ओ० २०,२१,५३,५४,५६, परिणिन्य परिनिर्वत ओ०७१ ६२,६४,११७,१३६. रा० ८,१०,१२,१४,१८, परिताव [परिताप ] ओ० ८६ ४६,५१,७२,७४,११८,२७६,२७६ से २८२,२६२' परितावणकर [परितापनकर | ओ० ४० ६५५,६८१,६८३,६८६,७०७,७०८,७१३,७१४, परिताविय परितापित | ओ० ६२ ७२३,७६०,७६१,७६६. जी० ३१४४२,४४५, परित परीत] जी० १.२६,६२,६४,६५,७७,७६, ४४६,४४८,४५७,५५५,६३०,७२७ ८०,८२,८७,८८,६६,१०१,१०३,११२,११६, परिघट्टिय [परिघट्टित रा० १७३. जी. ३।२८५ ११६,१२१,१२३,१२८,१३४,१३६, ६७५, परिषट्ठ परिघृष्ट ] रा० ५२,५६,२३१,२४७. जी. ३१३६३,४०१ परित्तसंसारिय [परीतसंसारिक] रा०६४ परिचत्त परित्यक्त] ओ०६२ परिघाव [परि+धाव -परिधावंति. रा० २८१. परिचंबिज्जमाण |परिचम्व्यमान | रा०८०४ जी० २१४८७ परिच्छेय परिच्छेद । ओ० ५७ परिनिव्वा परि + निर ।-वा ] .....परिनिव्वापरिजण [परिजन । ओ० १५०. रा० ७५१,८०२ हिति. रा०८१६ परिपोलता [परिपीड़य] जी० १५० पिरिजाण {परि ज्ञा}--परिजाणाइ. रा० ७०१ परिपुण्ण [परिपूर्ण] रा० २४ —परिजाणाति. रा० ७५३ परिपूत [परिप्त | जी० ३।८७८ परिजूसिय [परिजुष्ट ] ओ० ४३ परिपूय परिपूत ] ओ० १११ से ११३,१३७,१३८ परिणत [परिणत] जी० ११५, ३१५८७,५६३,५६५, परिभव (परिभव] ओ० ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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