Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Raipaseniyam Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 278
________________ उवणी-उववण्णपुव √ उवणी [ उप + ती ] --उवणेइ. रा० ६८३ -- उवर्णेति रा० २८७. जी० ३:४५० - जवणेहि रा० ६८० उवणेहिइ. रा० ८०७ उवणेहिति ओ० १४५. रा० ८०५ --- वहिति ओ० १४६ जवणीत [ उपनीत ] जी० ३१८८६ उaणीय [ उपनीत ] रा० ७२०, ७२३. जी० ३५६२,६०१ उवणीयअवगीयचरय [ उपनीतअपनी तरच रक ] ओ० ३४ उवणीयचरय | उपनीतचरक] ओ० ३४ उवणेय [ उपनेय ] रा० ७२० / उववंस [ उप + दर्शय् ] -- उवदंसिस्सामि रा० ७७१ – उवदंति रा० ७६. जी० ३३४४७ -- अवदसे. रा० ७३ उबवंसितए | उदर्शयितुम् | रा० ६३ उवयंसत्ता [ उपद] रा० ७३ उबवं सेमाण [ उपदर्शयत् ] रा० ५६ उवदिट्ठ [ उपदिष्ट ] ओ० ४६ उद्दव [ उपद्रव ] जी० ३।६२४ उवनचिचज्जमाण | उपनृत्यमान ] रा० ६८५ उवनिमंत [ उप + निमन्त्रय् ] उवनिमंति रा० ७१३ उवनिविट्ठ [ उपनिविष्ट ] रा० २० उवप्पयाण | उपप्रदान ] रा० ६७५ उभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिभोग परिमाण ] ओ० ७७ उवमा [ उपमा ] ओ० १३,२३,१६५/१६. रा० १५६,७५२, ७५४,७५६, ७५८, ७६०,७६२, ७६४. जी० ३१२७,२३२ उमा [दे०] खाद्य विशेष जी० ३१६०१ उवयार | उपचार ] अं० २,१५,५५ २० १२,३२, ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१० जी० ३७२, ४४७, ४५७ से ४६२, ४६५. ४७०, ४७७, ५१६, ५२०,५५४,५८०, ५६१,५६७ उदयारियालयण [ उपकारिकालयन | २१० २०३ Jain Education International saurरियाले [ उपकारिकालयन ] रा० २०१, २०२ उवरि [ उपरि ] रा० १३०. जी० ३ २६४ [उपरि ] ओ० १२. रा० ३७. जी० ३।७७ safter | उपरिचर ] जी० ३।११७ उरिम | उपरितन | ० १६० जी० ३७१,७२, ३१७, ३४६,३५७ ८५ उवरिमगेविज्ज [ उपरितनवे | जी० २२६६ उवरिमगेवेज्ज [ उपरितनबेय ] जी० २ १४८, १४९ उवरिमगेवेज्जग | उपरितनग्रैवेयक ] जी० ३ १०५६ वरिल्ल [ उपरितन ] मो० १६२,१६५. जी० ३।६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से १००७,११११ √ उवलंभ [ उप + लभ् ] -- उबल भेज्जा. जी० ३१११८ --- उवल भिस्साम. रा० ७६८ जल | उपलब्ध ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६ उवला लज्जमाण | उपलाल्यमान ७१०,७७४,८०४ उप [ उप + लिप् । उदलिप्पड़, ओ० १५०. रा० ८११ - उवलिप्पि हिति. ओ० १५०८११ उवलित [ उपलिप्त ] ० ५५, ६० से ६२. रा० २८१,५०२. जी० ३।४४७ रा० ६८५, उबलेवण [ उपलेपन ] रा० ७७२ उववज्ज [ उप + पद् । उववज्जइ, ओ० ८७ -- उववज्र्ज्जति. ओ० ७३. जी० १.५१ -- उववज्जिहिति ओ० १४० - - उववज्जिहिंसि रा० ७५० उबवण्ण [ उपपन्न | ओ० ११७. रा० २७९,७५० से ७५३,७६६. जी० ३५३, ११७,१२६ / ५, ४३६, ४४०, ४४५, ८३८ २१, ५४३, ८४६ For Private & Personal Use Only | उपन्न | रा० २७६ से २७८,२८४, २८७,६६६. जी० ३।४४३ से ४४५, ८४२, ८८४५ ववणपुष्व | उपपन्नपूर्व ] जी० ३।५३,६७५, www.jainelibrary.org

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