Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सुबोधिनी टीका. सू. ३८ सूर्याभस्य समुद्घातकरणम् श्रुत्य यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरः तत्रैव उपागच्छन्ति, उपागत्य श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दन्ते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्थित्वा यत्रैव गौतमदिकाः श्रमणा निर्ग्रन्था तत्रैव उपागच्छन्ति ॥ सू० ३८ ॥
टीका-'तएण ते बहवे देवकुमारा' इत्यादि-व्याख्या निगदसिद्धा। सू. ३८ । ____ मूलम्—तएणं ते बहवे देवकुमारा देवकुमारीओ य समामेव समोसरणं करेंति, करिता समामेव पंतोओ बंधंति, बंधित्ता समामेव पंतिओ नमसंति, नमंसित्ता समामेव पंतिओ अवणमंति, अवणमित्ता समामेव उन्नमंति, उन्नमित्ता एवं सहियामेव ओनमंति एवं सहियामेव उन्नमंति, उण्णमित्ता थिमियामेव-ओणमंति थिमियामेव उन्नमंति संगयामेव ओनमंति संगयामेव उन्नमंति, उन्नमित्ता समामेव पसरंति,
सूर्याभदेव के द्वारा पूर्वोक्तरूप से आज्ञापित किये गये वे हष्टतुष्ट यावत् हृदयवाले होकर एवं दोनों हाथों को जोडकर उसकी प्रदत्त आज्ञा को स्वीकार किया ( पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति ) स्वीकार करके फिर वे सबके सब जहां श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे वहां पर आये ( उवागच्छित्ता) वहां आकर के उन्होंने (समणं भगवं महावीरं वंदंति नमसंति) श्रमण भगवान महावीर को वन्दना की, नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमाइया समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छंति ) वन्दना नमस्कार करके फिर वे जहां गौतमादि श्रमण निग्रन्थ थे, वहां पर आये । इस सूत्र का टीकार्थ स्पष्ट है ॥ सू० ३८ ॥
દેવ વડે આજ્ઞાપિત થયેલાં તેઓ-હષ્ટ તુષ્ટ યાવત, હદયવાળા થઈને અને બંને डायाने डीन तेमनी माज्ञाने स्वारी. ( पडिसुणित्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छंति) स्वीजरीने पछी तेसो गधा यi श्रम सजवान विराभान ता त्यां गया. ( उवागच्छित्ता) त्यांने ते (समणं भगव महावीर वदति नमसंति ) श्रमण सगवान महावीरने ना तेम४ नमः४।२
र्या (वदित्ता नमंसित्ता जेणेव गोयमइया समणा निग्गंथा तेणेव उवागच्छंति) વંદના તેમજ નમસ્કાર કરીને પછી તેઓ જ્યાં ગૌમત વગેરે શ્રમણ નિગ્રંથ હતા, ત્યાં ગયા. આ સૂત્રને ટીકાથે સ્પષ્ટ છે. એ સૂ. ૩૮
શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧