Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 656
________________ ६४४ राजप्रश्नीयसूत्रे स्त्या मणिपीठिका यत्रैव पौरस्त्या जिनप्रतिमा तत्रैव उपागच्छति, तदेव, दाक्षिणात्या मणिपीठिका दाक्षिणात्या जिनप्रतिमा तदेव । यत्रैव दक्षिणात्यश्चैत्यवृक्षस्तत्रैव उपागच्छति. तदेव । यत्रैव महेन्द्रध्वजो यत्रैव दाक्षिणा त्या नन्दापुष्करिणी तत्रैव उपागच्छति, लोमहस्तकं परामृशति. तोरणांश्च मणिपेढिया, जेणेव उत्तरिल्ला जिणपडिमाः. तं चैव सव्वं, जेणेव पुरथिमिल्लामणिपेडिया, जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा, तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह जहां उत्तरीय मणिपीठिका थी और उत्तरीय जिनप्रतिमा थी-वहां पर आया-वहां पर भी उसने पूर्वोक्त सब कार्य किये. इसके बाद वह जहां पौरस्त्यमणिपीठिका और पौरस्त्य जिनप्रतिमा थी-वहां पर आया (तं चेव) वहां आकर के भी उसने वे ही पूर्वोक्त सब कार्य किये (दाहिजिल्ला मणिपेढिया दाहिणिल्ला जिणपडिमा, तं चेव) इसके बाद वह जहां दाक्षिणात्य मणिपीठिका एवं दक्षिणात्य जिणप्रतिमा थी-वहां पर भी आकर के उसने वे ही सब पूर्वोक्त कार्य किये (जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह जहां दक्षिणात्य चैत्यवृक्ष था वहां पर आया (तं चेव) वहां आकर के भी उसने सब ही पूर्वोक्त कार्य किये (जेणेव महिंदज्झये, जेणेव दाहिणिल्ला नंदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह जहां महेन्द्रध्वज था वहां पर आया-वहां से फिर जहां नन्दापुष्करिणी थी-वहां आया वहां आकर के उसने (लोमहत्थगं परामु जेणेव पुरथिमिल्ला मणिपेढिया, जेणेव पुरथिमिल्ला जिणपडिमा. तेणेव उवाग જીરું) ત્યાર પછી જ્યાં ઉત્તરીય મણિપીઠિકા હતી અને ઉત્તરીય જિન પ્રતિમા હતી ત્યાં ગયા. ત્યાં જઈને તેણે પૂર્વકથિત બધાં કાર્યો યોગ્ય રીતે સંપન્ન કર્યા ત્યાર પછી તે જ્યાં પૌરય મણિપીઠિકા અને પૌરય જિનપ્રતિમાં હતી ત્યાં ગયો. (तं चेव ) त्याने ५६ ते पूछित था ये सपन्न . ( दाहिणिल्ला मणिपेढिया, दाहिजिल्ला जिणपडिमा, तं चेव) त्या२ ५छी ते यi हाक्षिणात्य મણિપીઠિકા અને દક્ષિણાત્ય જિનપ્રતિમા હતી ત્યાં જઈને પણ તેણે પૂર્વોક્ત બધાં आये पूरा ४ा. (जेणेव दाहिणिल्ले चेइयरुक्खे तेणेव उवागच्छइ त्या२ पछी ते rui हाक्षिणात्य येत्यक्ष तु त्यां गया. (तं चेव त्य ने ५५ ते पूति मयां यो योय ते ५२२ ४ाः, (जेणेव महिंदज्झये, जेणेव दाहिणिल्ला नदा पुक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ) त्या२ ५छी म -Far त२३ गया. त्यांथी पछी ते यi नारिणी ती त्यां गया. त्यi / तरी ( लोमहत्थगं परामुसइ શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

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