Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 654
________________ ६४२ राजप्रश्नीयसूत्रे सिंहासनं च लोमहस्तकेन प्रमार्जयति, दिव्यया दकधारया सरसेन गोशीर्षचन्दतेन चर्चकान् ददाति, पुष्पारोहणम् ० आसक्तावसक्त यावद् धूपं ददाति । यत्रैव दाक्षिणात्यस्य प्रेक्षागृहमण्डपस्य पाश्चात्य द्वारं तदेव उत्तरीयं द्वारं तदेव, पौरस्त्यं द्वारं तदेव दक्षिणं द्वारं तदेव, यत्रैव दाक्षिणात्यः चैत्यस्तूपस्तत्रैव लोमहत्थगं परामुसइ, अक्खाडगं च, मणिपेढियं च. सीहासणं च लोमहत्थएणं पमजइ) इसके बाद वह दक्षिणात्य प्रेक्षागृह मंडप के बहुमध्यदेशभाग में स्थित वज्रमय अक्षपाटकके, मणिपीठिका के एवं सिंहासन के पास आया, वहां लोमहस्तक से उन अक्षपाटक, मणिपीठिका और सिंहासन को साफ किया (दिव्वाए दगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ) तथा उन सबको दिव्य जलधारा से सिंचित किया एवं सरस गोशीर्षचन्दन से उन्हें चर्चित किया. तथा धूपजलाने तक के और भी सब कार्य उसने किये पुप्फारुहणं ०, आसत्तोसत्त-जाव धूवं दलयइ) यही बात इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गइ है (जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंडवस्स पचाथिमिल्ले दारे तं चेव उत्तरिल्ले दारे तं चेव, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दहिणे दारे तं चेव) इसके बाद वह जहां दक्षिणात्य प्रेक्षागृहमंडप का पाश्चात्य द्वार था वहां आया वहां आकर उसे प्रमार्जनादि कार्य से लेकर धूपदान तक के सब कार्य किये, इसके बाद वह दाक्षिणात्य प्रेक्षागृहमंडप के उत्तरीय द्वार पर आया, वहां आकर के उसने प्रमार्जनादिकार्य से लेकर धूपदानतक के सब करने योग्य कार्य किये। बाद में वह वहां सइ, अक्खाडगं च मणिपेढियं च, सीहासणं च लोमहत्थएणं पमज्जइ) प्यारे पछी તે દાક્ષિણાત્ય પ્રેક્ષાગૃહમંડપના બહુમધ્યદેશભાગમાં સ્થિત વજામય અક્ષપાટક, મણિપીઠિકા અને સિંહાસનની પાસે આવ્યો ત્યાં મહસ્તક (સાવરણ) થી सक्षपाट४, मणिपा। मने सिंहासनने साई .. (दिव्वाए दगधाराए सरसेणं गोसीसच दणेणं चच्चए दलयइ ) तेमन मधाने हिव्यधाराथा सिंथित ४शन સરસ ગોશીર્ષ ચંદનથી તેમને ચર્ચિત કર્યા તથા ધૂપ સળગાવવા સુધીનાં બધાં आर्या सपन्न ४ा. (पुप्फारुहण०, आसत्तोसत्त-जाव धूवं दलयइ) से०४ पात सा सूत्रपडे ५४८ ४२वामां मावी छ. (जेणेव दाहिणिल्लस्स पेच्छाघरमंढवस्स पञ्चथिमिल्ले दारे तं चेव उत्तरिल्ले दारे तं चेव, पुरथिमिल्ले दारे तं चेव, दाहिणे दारे त चेव) त्या२ ५छी ते दक्षिणात्य प्रेक्षागृड म पन। पाश्चात्य द्वार त२३ ગયા. ત્યાં જઈને તેણે પ્રમાર્જન વગેરેથી માંડીને ધૂપદાન સુધીનાં બધાં કાર્યો સંપન્ન કર્યા. ત્યાર પછી તે દક્ષિણાત્ય પ્રેક્ષાગૃહમંડપના ઉત્તરીયદ્વાર તરફ ગયે. ત્યાં પહોંચીને તેણે પ્રમાર્જન વગેરે કાર્યથી માંડીને ધૂપદાન સુધીના બધાં કાર્યો શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

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