Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 669
________________ सुबोधिनी टीका सू० ९२ सूर्याभदेवस्य प्रतिमापूजाचर्चा तथा-धर्मक्रियापेक्षया देवा नैरयिकाश्चाधार्मिकाः प्रतिपादिताः सन्ति, अतो देवानामनुकरणेऽधर्मो भवति, तस्मात् प्रतिमापूजा सर्वथा परित्याज्यैव (६) किञ्च यदि प्रतिमापूजया सम्यक्त्वस्य प्राप्तिः स्यात्तदाऽनेकवारं देवभव प्राप्तिरपि नो भवेत् , सम्यक्त्वप्राप्त्यैव मोक्षप्राप्तिरपि सम्पद्येत (७) । जिनोक्तधर्माचरणविषये 'एस मे पेच्चा हियाए, सुहाए, खेमाए' एतेन मे प्रेत्य हिताय, सुखाय, क्षेमाय इत्यादिपाठः समुपलभ्यते, लौकिके च 'पच्छा पुराय हियाए सुहाए खेमाए' पश्चात् पुरा च हिताय, सुखाय, क्षेमाय' इत्यादिपाठः परम्पराप्राप्तो वर्तते, तथा च धर्माचरणस्य पाठे 'पेचा' प्रेत्य, परभवार्थम् इति ईदृशः पाठो वर्तते किन्तु राजप्रश्नीये सूर्याभदेवस्य पाठे-'पेच्छा य' पश्चात् , पुरा च, इतीदृशः पाठ एव वर्तते न तु 'पेच्चा' प्रेत्य इतिपाठः, तावतापि ज्ञायते यत् इयं प्रतिमा पूजा क्रिया न धर्माय कल्पते (८) धर्मक्रिया की अपेक्षा से देवों को एवं नैरयिकों को अधार्मिक कहा गया है अतः देवों का अनुकरण करने में अधर्महोता है, इसलिये मूर्तिपूजा सर्वथा छोडने के योग्य ही है। किश्च-यदि मूर्तिपूजा से सम्यक्त्व की प्राप्ति होती तो फिर अनेक वार जो देवभव की प्राप्ति होती है, वह नहीं होनी चाहिये-क्यों कि सम्यक्त्वी को धर्म से मोक्षप्राप्ति ही हो जावेगी । ७-जिनोक्त धर्म के आचरण के विषय में 'एस मे पेच हियाए, सुहाए, खेमाए' जो ऐसा पाठ उपलब्ध होता है और लौकिक में 'पच्छा पुरा य हियाए, सुहाए, खेमाए' ऐसा पाठ परम्परा से प्राप्त होता है-सो धर्माचरण के पाठ में 'पेचा' ऐसा पाठ है, किन्तु राजप्रश्नीय में सूर्याभदेव के पाठ में 'पच्छा पुराय' ऐसा पाठ है 'पेचा' ऐसा पाठ नहीं है. अतः ધર્મક્રિયાની અપેક્ષાએ વિચાર કરતાં દેવોને અને નૈરયિકોને અધાર્મિક કહેવામાં આવ્યાં છે એથી દેવને અનુસરવામાં અધર્મ હોય છે. એથી મૂર્તિપૂજા સર્વથા ત્યાજ જ છે. વળી, જે મૂર્તિપૂજાથી સમ્યકત્વની પ્રાપ્તિ થતી હતી તે પછી અનેકવાર જે દેવભવની પ્રાપ્તિ થાય છે તે ન થવી જોઈએ. કેમકે સમ્યફવીને તો ધર્મથી મોક્ષ પ્રાપ્તિ જ થઈ જશે. ___७-मिनात धर्मना मायराना समयमा 'एस मे पेच्चा हियाए, सुहाए, खेमाए' २ ॥ तन। ५8 ५५५ थाय छ भने सौमि ‘पच्छा पुराय हियाए, सुहाए, खेमाए' ५२ ५२।थी माव। ५।४ मणे 2. ध य२९ ५।४ मा पेच्चा ' मा तने। ५।४. छे. ५५ २०४ प्रश्रीयमा सूर्याभवना 'पेच्छा पुराय' શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

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