Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 652
________________ ६४० राजप्रश्नीयसूत्रे आभरणारोहणं करोति, आसक्तवसक्त० कचग्रहगृहीत. धूपं ददाति । यत्रैव दाक्षिणात्य–मुखमण्डस्य उत्तरीया स्तंभपतिस्तत्रैव उपागच्छति, लोमहस्तकं परामृशति, स्तम्भांश्च शालभधिकाश्च व्यालरूपाणि च लोमहस्तकेन प्रमार्जयति, यत्रैव पाश्चात्यस्य द्वारस्य धूपं ददाति । यत्रैव दगधाराए० सरसेणं गोसीमचंदणेणं चच्चए दलइ) बाद में उसने दिव्यजल धारा से उन्हें सिंचित किया और सरस गोशीर्ष चन्दन के लेप से उन्हें चर्चित किया. पुष्पावरोहण किया, यावत् आभरणोंका आरोहण किया. तथा ऊपर से नीचे तक लटकती हुई मालाओं के समूह को वहां सजाया, बाद में कचग्रहगृहीत यावत् विमुक्त पंचवर्णवाले पुष्पों से मुक्तपुष्पपुं. जोपचारकलित किया-फिर धूप जलाई (पुष्फारोहणं जाव आभरणारुहणं करेइ०) यही बात यहां इस सूत्र पाठ द्वारा प्रकट की गई है। (तएणं से सूरियाभो देवो जेणेव दाहिणिल्लमुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खभपंती, तेणेव उवागच्छइ) इसके बाद वह सूर्याभदेव जहां दक्षिणात्य मुखमंडप की उत्तरीया स्तंभपंक्ति थी, वहां पर आया (लोमहत्थगं परामुसइ थंभेय, सालभंजि याओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमजइ, जहा चेव पचत्थिमिल्लस्स दारस्स जाव धूवं दलयइ) वहां आकरके उसने लोमहस्तक-रोम की बनी हुई संमार्जनी को उठाया और उससे स्तंभों को, शालमंजिकाओं एवं व्यालरूपों को साफ किया, तथा दिव्य जलधारा से सींचने आदिरूप सब हत्थमं परामुसइ, दारचेडीओ य, सालभंजियाओ, बालरूवए य लोमहत्थेणं परामुसइ) ત્યાં જઈને તેણે મહસ્તક હાથમાં લીધું અને તેનાથી દ્વારશાખાઓ, શાલભંજિકાઓ भने व्यासवान साई ध्या, (दिव्वाए दगधाराए० सरसेण गोसीसचंदणेणं चच्चए दलइ) त्या२५छी विव्यसयाराथी तमनु सिंचन यु' भने सरसगाशीष यह નના લેપથી તેમને ચર્ચિત કર્યા તથા પુષ્પ યાવત્ આભરણેથી તેમને સજિજત કર્યા. અને ત્યારબાદ ઉપરથી નીચે સુધી લટકતી માળાઓના સમૂહથી તે સ્થાનોને સુશોભિત કર્યા. ત્યારબાદ કચગૃહગૃહીત યાવત વિપ્રયુક્ત પાંચવર્ણવાળાં પુષ્પો मर्पित ४. सने धू५ सणाव्य.. (पुप्फारोहणं जाव आभरणारहणं करेइ० ) मा and Hai सूत्र पा8 43 प्र४८ ४२वामा भावी छे. (तए णं से सूरियाभो देवो जेणेव दाहिणिल्लमुहमंडवस्स उत्तरिल्ला खंमषंती, तेणेव उवागच्छई ) त्या२५छ। તે સૂર્યાભદેવ જયા દાક્ષિણાત્ય મંડપની ઉત્તરીયા સ્તંભ પક્તિ હતી ત્યાં આવ્યો. (लोमहत्थगं परामुसइ थंभेय, सालभंजियाओ य वालरूवए य लोमहत्थएणं पमज्जद्द, जहाचेव पञ्चथिमिल्लस्स दारस्स जाव धूवं दलयइ) त्यां धन तेरी મહસ્તક એટલે કે રૂવાડાવાળી સાવરણી હાથમાં લીધી અને તેનાથી સ્તંભે, શાલભંજિકાઓ અને વાલરૂપોને સાફ કર્યા. તેમજ દિવ્ય જલધારાથી સિંચન શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

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