Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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राजप्रश्नीयसूत्रे न्तरापणवीथिकं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याभ विमान मञ्चातिमञ्चकलितं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः सूर्याभं विमानं नानाविधरागावसितं ध्वजपताकातिपताकामण्डितं कुर्वन्ति. अप्येकके देवाः सूर्याभ विमानं लेपोल्लेपमहित गोशीर्षसरसरक्तचन्दनदरदत्तपश्चाङ्गुलितलं कुर्वन्ति, अप्येकके देवाः हियं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को पानी छिडककर आसिक्त किया, कूडाकरकट आदि के दूर करने से उसे संमार्जित किया और गोमयादि (गोवर) द्वारा लीपे पोते गये की तरह उपलिप्त किया. इस कारण वहां की हट्टमार्ग जैसी बडी २ गलियों के मध्यभाग शुद्ध संमृष्ट और बिलकुल समार्जित हो गये (अप्पेगइया देवा सरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने सूर्याभविमान को जिसमें मंच के ऊपर मंच लगाये गये ऐसा कर दिया (अप्पेगइया देवा सूरिया विमाण णाणाविहरागोसियं झयपडागाइपडागमंडियं करेंति ) तथा कितनेक देवोंने सूर्याभविमान को नाना प्रकार के रंगों से युक्त बनाया ध्वजा एवं पताकातिपताकाओं से उसे सजा दिया (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाण लाउल्लोइयमहिय करेंति) तथा कितनेक देवोंने उस सूर्याभविमान को गोमयादि (गोवर) से लिपे हुये हुए की तरह एवं खडियामिट्टी से पुते हुए की तरह बिलकुल साफसुथरा एवं धवलिमा युक्त बना दिया (गोसीस सरसरत्तचंदणददरदिण्णपचंगुलितलं करेंति ) और गौशीर्षचन्दन और કેટલાક દેએ તે સૂર્યાભવિમાનને પાણી છાંટીને અસિક્ત કર્યું, સાવરણીથી કચરાં વગેરેને સાફ કર્યું. અને ગોમયાદિ (છાણ) વડે લિપ્ત કરાયેલાની જેમ લીપીને ચોકખું કર્યું. એથી ત્યાંના બજારના મોટા મોટા રસ્તાઓના મધ્ય ભાગ शुद्ध, सभृष्ट भने म सा सा३ ५६ गया. (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं मंचाइमंचकलियं करेंति) तेभ सा वामे सूर्यालविभानन भी भयनी ५२ भय तैयार ४२वामा भावेला छे. ते मनावी हाधु, (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं णाणाविहरागोसियं जयपडागाइपडागमंडियं करेंति) तम०४ કેટલાક દેઓ સૂર્યાભવિમાનને અનેક જાતના રંગથી રંગી દીધું તેમજ વજાઓ, पतातियताथी ते सुशामित शहाधु. (अप्पेगइया देवा सूरियाभं विमाणं लाउल्लोइयमहियं करेंति) तेम असा हवाय ते सूर्यासविमानन गोमयादि (છાણ) થી લિપ્ત કરેલાની જેમ તથા ખડિયામાટીથી જોળીનાખવાની જેમ मेम २१२७ अने श्वेत मनावादी. (गोसीस सरसरत्तचंदणददरदिण्णपंचंगुलितलं करेंति ) भने गाशीष यन भने सरस २४तय हनना मा पांच पाय in
શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧