Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

Previous | Next

Page 633
________________ सुबोधिनी टीका. स. ९१ सूर्याभदेवस्य अलङ्कारधारणादिवर्णनम् ६२१ पौरस्त्येन द्वारेण प्रतिनिष्क्रामति, प्रतिनिष्क्रम्य यत्रैव व्यवसायसभा तत्रैव उपागच्छति व्यवसायसभाम् अनुप्रदक्षिणीकुर्वन् अनुप्रदक्षिणीकुर्वन् पौरस्त्येन द्वारेण अनुप्रविशति, यत्रैव सिंहासनं यावत् सन्निषण्णः। ततः खलु तस्य सूर्याभस्य देवस्य सामानिकपरिषदुपन्नका देवा पुस्तकरत्नम् उपनयन्ति । ततः खलु स सूर्याभो देवः पुस्तकरत्नं गृह्णाति, गृहीत्वा पुस्तकरत्नं मुञ्चति, मुक्त्वा पुस्तकरत्नं विघटयति, विघटय्य पुस्तकरत्नं वाचयति, वाचयित्वा हुआ, सिंहासन से ऊठा (अब्भुट्टित्ता-अलंकारियसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं) ऊठकर वह अलंकारिकसभा से उसके पूर्वदिग्वी दरवाजे से होकर (पडिनिक्खमइ) बाहर निकला (पडिनिक्वमित्ता-जेणेष ववसायसभा तेणेव उवागच्छइ) बाहर निकलकर फिर वह जहां व्यवसायसभा थी वहां पर आया (ववसायसभं अणुपयाहिणी करेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ) वहां आकर उसने व्यवसायसभा (कार्यसभाकी) बार २ प्रदक्षिणाकी, फिर वह उसमें उसके पूर्वदिगूवी द्वारसे होकर प्रविष्ट हुआ (जेणेव सीहासणे जाव सन्निसण्णे) सो जहां पर सिंहासन रखा हुआ था उस पर पूर्व दिशाकी और मुंह करके बैठ गया. (तएणं तस्स सरियाभस्स देवस्स सामाणियपरिसोववन्नगा देवा पोत्थयरयणं उवणेति) इसके बाद उस सूर्याभदेवके सामानिक परिषदामें उत्पन्न हुए देवोंने उसके समक्ष पुस्तकरत्नको उपस्थित किया. (तएणं से सरियामे देवे पोत्थयरयणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयइ, मुइत्ता पोत्थयरयण विहाडेइ, विहाडित्ता थये।. मरे त्या२५छी सिंहासन परथी असो थये। (अब्भुट्टित्ता अल'कारियसभाओ पुरथिमिल्लेण दारण) से थने ते म२ि४ समाना ते पूर्व दिशा त२३न। पारथी थाने (पडिनिक्खमइ) मा२ नये. (पडिनिक्खमित्ता जेणेव बवसायसभा तेणेव उवागच्छद) महार नीजीने पछी ते या व्यवसाय ससा ती त्यो गयो. (बवसायसभं अणुपयाहिणी करेमाणे २ पुरथिमिल्लेणं दारेण अणुपविसइ) ત્યાં જઈને તેણે વ્યવસાય સભાની વારંવાર પ્રદક્ષિણા કરી અને ત્યાર પછી તે तभा पूरी त२५ना प्रविष्ट थयो. (जेणेव सीहासणे जाव सन्निसण्णे) અને જ્યાં સિંહાસન હતું ત્યાં પહોંચીને પૂર્વ દિશા તરફ મુખ કરીને બેસી गये।. (तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स सामाणिय परिसोववन्नगा देवा पोत्थयरयणं उवणेति ) त्या२५छी ते सूर्यामविना सामानि परिषामा उत्पन्न थये। वोये तेनी सामे पुरत २त्न उपस्थित प्रयु'. ( त एणं सूरियाभे देवे पोत्थयरयणं गिण्हइ, गिण्हित्ता पोत्थयरयणं मुयइ, मुइत्ता पोत्थयरयणं विहाडेइ विहाडित्ता पोत्थयरयणं શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684 685 686 687 688 689 690 691 692 693 694 695 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718