Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 578
________________ ५६६ राजप्रश्नीयसूत्रे ___टीका-'तएणं' इत्यादि-व्याख्या निगदसिद्धा ॥ सू० ८३ ॥ ____ मूलम् --तएणं से सूरियाभे देवे तेसिं सामाणियपरिसोववन्नगाणं देवाणं अंतिए एयमह्र सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ-जाव हियए सयणिज्जाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता उववायसभाओ पुरथिमिल्लेणं दारेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव हरए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता हरयं अणुपयाहिणी करेमाणे अणुपयाहिणो करेमाणे पुरथिमिल्लेणं तोरणेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता पुरथिमिल्लेणं तिसोवाणपडिरूवएणं पच्चोरुहइ पञ्चोरुहिता जलावगाहं जलमज्जणं करेइ, करित्ता जलकिडढं करेइ, करित्ता जलाभिसेयं करेइ, करित्ता आयंते चोखे परमसुईभूए हरयाओ पच्चोतरह, पच्चोत्तरित्ता जेणेव अभिसेयसभा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अभिसेयसभं अणुपयाहिणीकरेमाणे अणुपयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं दारेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव सीहासणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे संनिसण्णे ॥ सू० ८४ ॥ लिये पश्चात् उचित है (तं एयं णं देवाणुप्पियाणं पुविवि पच्छा वि हियाए खेमाए निस्सेयसाए आणुगमियत्ताए भविस्सइ) यह आप देवानुप्रिय के लिये पहिले भी और पीछे भी हितसाधनरूप है, सुख का साधनरूष है, क्षमा का साधनरूप है, कल्याणका साधनरुप है, और परम्परारूपसे सुखका साधनरूप है। इसका टीकार्थ स्पष्ट है ॥ सू० ८३ ॥ Gयित छ भने मा५ देवानुप्रिय भाटे 40 पश्चात अथित छे, (तं एयं देवाणुप्पियाणं पुट्वि वि पच्छा वि हियाए सुहाए खेमाए निस्सेयसाए आणुगमियत्ताए भविस्सइ) मा५ वानुप्रिय माटे । पहेता ५९ अने पछी ५५ हितसाधनરૂપ છે, સુખસાધનરૂપ છે, ક્ષમાસાધનરૂપ છે, કલ્યાણ સાધનરૂપ છે અને પરંપરાથી સુખનું સાધનરૂપ છે. अर्थ-24। सूत्रन। २५४ ४ छ. ।। सू० ८3 ।। श्री राप्रश्नीय सूत्र:०१

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