Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
राजप्रश्नीयसूत्रे रत्नमय्यः अच्छा यावत् प्रतिरूपाः महत्यो महत्यो गोकलिअचक्रसमानाः प्रज्ञाप्ताः श्रमणाऽऽयुष्मन् ! तेषां खलु तोरणानां पुरतो द्वौ द्वौ सुप्रतिष्ठको प्रज्ञप्तौ, ते खलु नानाविधप्रसाधनभाण्डविराजिता इव तिष्ठन्ति । सर्वरत्नमयाः अच्छाः यावत् प्रतिरूपाः । तेषां खलु तोरणानां पुरतो द्वे द्वे मनोगु
ये छोटे २ पात्र निर्मलजल से पहिपूर्ण हैं अतः पांच प्रकार के अनेकविध मणि जिसमें लगे हुए हैं ऐसे हरितवर्णवाले फलों से ये बहुत सुन्दर ढंग से भरे हुए न हों मानों ऐसे मालूम पड़ते हैं । (सव्वरयणामइओ अच्छाओ) जाव पडिरूवाओ महया महया, गोकलिंजरचक्कसमाणीओ पण्णत्ताओ) ये सब छोटे २ पात्र सर्वथा रत्नमय हैं, निमल हैं, यावत् प्रतिरूप हैं, पृथुल (बडा) हैं अतएव हे श्रमण आयुष्मन् ! गाय को चारा जिसमें रखते हैं ऐसे वंश निर्मित टोकरी के समान ये आकार में गोल गोल कहे गये हैं । (तेसिं णं तोरणाणं पुरओ दो दो सुपइट्ठा पण्णत्ता) इन तोरणो के आगे दो दो सुप्रष्ठिक पात्र विशेष कहे गये हैं । (णाणाविह पसाहणभंड विरइया, इव चिट्ठति) ये सुप्रतिष्ठक नाना प्रकार के प्रसाधनों के साधनभूत् सर्वोषधि आदि-उपकरण वाले पात्रों से भरे हुए जैसे प्रतीत होते हैं । (सव्वरयणा मया अच्छा जाव पडिरूवा) ये सब सर्वथा रत्नमय हैं, निर्मल हैं यावत् प्रतिरूप हैं । (तेसि णं तोरणाणं पुरओ दो दो मणोगुलियाओ, पण्णत्ताओ)
नाना पात्र ४डेवाय छे. ( अच्छोदगपरिहत्थाओ, णाणामणि पंचवण्णस्स फलहयगस्स बहुपडिपुण्णाओ विव चिटुंति ) ! नाना नाना पात्रो नि ४थी પરિપૂર્ણ છે, એથી પાંચ જાતના અનેકવિધ મણિ જટિત હોવાથી આ બધા पात्र रित efil सुहर थी मा य तेम हेमाय छे. (सव्वरयणामईओ अच्छाओ जाव पडिरूवाओ महया महया गोकलिंजर चक्कसमाणीओ पण्णताओ) मा मा नाना पात्र सवथा २त्नमय छ, नि छ, यावत् प्रति३५ છે, પૃથુલ છે એથી જ હે શ્રમણ આયુશ્મન ! ગાયોને ચાર જેમાં મૂકવામાં मा छे तेवा qiसना टपमा २ ५ भातिवाणा वाय छे. (तेसिं णं तोरणाणं पुरओ दो दो सुपइट्ठा पण्णत्ता) 1 तणनी सामे मामे सुप्रतिष्ठ४ ४वाय छ (णाणाविह पसाहणमंडविरइया, इव चिटुंति ) मे सुप्रतिછકે નાના પ્રકારના પ્રસાધનાના સાધનભૂત સર્વોષધિ વગેરે ઉપકરણ વાળા पात्रोथी अरेवानी भागे छे. ( सव्वरयणामया अच्छा जाव पडिरूवा ) मा मधा सामना २त्नमय छ, निम छ यावत् प्रति३५ छ. ( तेसिं गं तोर
શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧