Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
________________
सुबोधिनी टीका. सू. ७८ देवशयनीयवर्णनम्
५३७ 'तस्स गं' इत्यादिटीका-तस्य पूर्वोक्तवर्णनविशिष्टस्य खलु देवशयनीयस्य उत्तरपौरस्त्ये= उत्तरपूर्व दिशोरन्तरालभागे-ईशानकोणे महती-विशाला एका मणिपीठिका= मणिमयी वेदिका प्रज्ञप्ता । सा मणिपीठिका अष्ट योजनानि=अष्टयोजनप्रमाणा आयामविष्कम्भेण, चत्वारि योजनानि-चतुर्योजनप्रमाणा बाहल्येन, तथा सर्वमणिमयी यावत्प्रतिरूपा। यावत्पदेन-अच्छाश्लक्ष्णा घृष्टा मृष्टा नीरजा निर्मला निष्पङ्का निष्कङ्कटच्छाया सप्रभा सश्रीका सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया अभिरूपा' इति संगृहयते । अच्छादिप्रतिरूपान्तपदानामर्थश्चतुर्दशसूत्रव्याख्यायां विलोकनीय इति । तस्याः खलु मणिपीठिकाया उपरि अत्र खलु महान्-विशाल एकः क्षुल्लको महेन्द्रध्वजः प्रज्ञप्तः। स क्षुल्लको महेन्द्रध्वजः षष्ठि योजनानि-पष्टियोजनप्रमाण ऊर्ध्वम् उच्चत्वेन, योजनम् एकयोजनप्रमाणो विष्कम्भेण, तथा वज्रमयः= वज्ररत्नमयः, वृत्तलष्टसंस्थितसुश्लिष्ट यावत्प्रतिरूपः, अत्र-'बट्टल?' त्यारभ्य 'अभिरूवे' इत्यन्तो महेन्द्रध्वजवर्णनपाठः हैं, निशित हैं, बडी तीक्ष्णधारवाले हैं और प्रासादीय ४ हैं ( सभाए णं सुहम्माए उवरिं अट्ठ मंगलगा झयाछत्ताइच्छत्ता ) सुधर्मा सभाके ऊपर भागमें आठ २ मंगलक हैं, ध्वजाएँ हैं और छत्रातिच्छत्र हैं। __टीकार्थ-इसका मूलार्थ के जैसा ही है 'सव्वमणिमई जाव पडिरूवा' में आगत इस यावत् शब्द से 'अच्छा, लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, निरजा निर्मला, निष्पङ्का, निष्कंकटच्छाया, स प्रभा, सश्रीका, सोद्योता, प्रासादीया, दर्शनीया, अभिरूपा' इन पदों का संग्रह हुआ है. इन अच्छादिप्रतिरूपान्त पदोंका अर्थ चौदहवें सूत्र की व्याख्या में लिखा जा चुका है 'सुसिलिट्ठ जाव पडिरूवे' में जो यह यावत् पद आया है सो इससे यह प्रकट किया गया धनुष वगेरे घi Sत्तम प्र -शस्त्री-भूखi छ. ( उज्जला निसिया, सूतिक्खधारा पासाईया४) मा स मसो म Garorqn छे, निशित छ, २४ तीक्षय धारा छे भने प्रासाहीय ४ छे. (सभाए णं सुहम्माए उवरिं अटूट मंगलगा झया छत्ताइच्छत्ता) सुधर्मा समान परिमाणमा मा४ २४ भग। છે, દવાઓ છે અને છત્રાહિચ્છત્ર છે. ___ -म। सूत्रनासाथ भूला प्रभारी छे. 'सव्वमणिमई जाव पडिरूवा' मां माता यावत् ' अच्छा लक्ष्णा, घृष्टा, मृष्टा, नीरजा, निर्मला, निष्पङ्का, निष्कंकटच्छाया, सप्रभा, सश्रीका, सोद्योता प्रासादीया दर्शनीया, अभिरूपा' मा પદોનો સંગ્રહ થયેલ છે. આ અછાદિ પ્રતિરૂપાન્ત પદોને અર્થ ૧૪ માં સૂત્રમાં सभामा माये। छे 'सुसिलिट्ठ जाव पडिरूवे' म ' यावत् ' ५६
શ્રી રાજપ્રશ્નીય સૂત્રઃ ૦૧