Book Title: Agam 13 Upang 02 Rajprashniya Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 554
________________ ५४२ राजप्रश्नीयसूत्रे तपनीयमयाः श्रीवत्साः, शिलाप्रवालमयाः ओष्ठाः, स्फटिकमया दन्ताः तपनीयमय्यो जिह्वाः, तपनीयमयानि तालुकानि, कनकमय्यो नासिका अन्त लॊहिताक्षप्रतिसेकाः, अङ्कमयानि अक्षीणि अन्तर्लोहिताक्षप्रतिसेकानि, रिष्टमय्यः ताराः रिष्टमयानि अक्षिपत्राणि, रिष्टमय्यो भ्रवः, कनकमयाः कपोलाः. कनकमयानि श्रवणानि. कनकमय्यो ललाटपट्टिकाः, वज्रमय्यः शीर्षघट्यः तपनीयमय्यः केशान्तकेशभूमयो, रिष्टमया उपरि मूर्धजाः ॥ सू० ७९ ॥ 'सभाएण' इत्यादि___टीका-खलु सभायां सुधर्माया उत्तरपौरस्त्ये उत्तरपूर्वयोर्दिशोरन्तरालभागेईशानकोणे अत्र खलु महद्-विशालम् एकं सिद्धायतनं प्रज्ञप्तम् । तत् सिद्धाअंकरत्नमय हैं, जंघाएँ कनकमय हैं, जानु कनकमय हैं, उरु कनकमय हैं. गात्रयष्टिकनकमय है नाभि तपनीयस्वर्णमय हैं, रोमराजि रिष्टरत्नमय है. चुचुक तपनीयमय हैं, श्रीवत्स तपनीयमयहैं ओष्ठ शिला प्रवालमय हैं दन्त स्फटिक मय हैं, जिह्वा तपनीयमय है तालु तपनीयमय हैं, नासिका कनकमय है. ताराकनीनिका-रिष्टरत्नमय है, अक्षिपत्र भी रिष्टरत्नमय हैं, भौएँ भी रिष्टरत्नमय हैं, कपोल कनकमय हैं, श्रवण भी कनकमय हैं, ललाटपट्टिका भी कनकमय है, शीर्षघटी मी वज्रमय है, बालान्त और बालभूमि तपनीय स्वर्णमय हैं. मस्तकके ऊपरके बाल रिष्टरत्नमय हैं। ___टीकार्थ-इसका मूलार्थ के जैसा ही है 'सभागमेणं जाव गोमाणसियाओ' ऐसा जो कहा गया है-सो उसका तात्पर्य ऐसा है कि-सुधर्मातवणिज्जमयाओ नाभीओ) मा प्रतिभासाना स्तर भने ५४तर तपनीय સુવર્ણમય છે. નખ અંક રત્નમય છે, જેઘાઓ કનકમય છે. જાન કનકમય છે, ઉરુ કનકમય છે. ગાત્રયષ્ટિ કનકમય છે, નાભિ તપનીયય સુવર્ણમય છે, રોમરાજી રિઝરનમય છે, ચુચુક તપનીયમય છે, શ્રીવત્સ તપનીમયય છે, ઓષ્ઠ શિલાપ્રવાલમય છે, દાંત સ્ફટિકમય છે, જિહ્વા તપનીયમય છે, તાલ તપનીય (સુવર્ણમય) છે, નાસિકા કનકમય છે, કનીનિકા આંખની કીકી રિઝ રત્નમય છે, અક્ષિપત્ર પણ રિઝરનમય છે, ભમ્મરે રિષ્ટ રત્નમય છે, કપલ–કનકમય છે. કાન પણ કનકમય છે, લલાટ પટ્ટિકા પણ કનકમય (સુવર્ણમય) છે, શર્ષઘટી પણ કનકમય છે, બાલાન્ત અને બાલાન્ત ભૂમિ તપનીય સ્વર્ણમય છે. માથાના વાળ રિષ્ઠ રનમય છે. :- सूत्रनाथ भूदाय मा ४ छ. “सभागमेणं जाव गोमाणसियाओ" मा २ ४ामा प्यु छ त म सा प्रमाणे थाय छ શ્રી રાજપ્રક્ષીય સૂત્રઃ ૦૧

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