Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 118
________________ 5 ***** take birth as human state of existence. But those who have yet to bear the fruit of some of their violent sinful activities take birth as wretched th persons. They are abnormal. They are hunch-backed. Their body is H disproportionate. They are dwarf, deaf, one-eyed, one-legged, with broken hands. Some of them are without some limbs, dumb and indistinct in faculty of speech. Some are blind or having diseased eyes. Some are under influence of demon gods. Some suffer from leprosy like diseases, fever, mental and physical diseases. Some have very short lifespan. Some suffer from hurts and injuries. Some are tall but 卐 disproportioned. Some have very irritating, unpleasant look. Some are dependent and without normal strength. They are always devoid of 5 happiness and are the subject of sufferings. 卐 卐 विवेचन प्रस्तुत सूत्र में ऐसे प्राणियों की दुर्दशा का चित्रण किया गया है जो हिंसा के फलस्वरूप नरक में उत्पन्न हुए थे और फिर नरक से किसी तरह कठिनाई से निकलकर सीधे मनुष्यभव को प्राप्त हुए पहले तिर्यंचगति की यातनाएँ भुगतकर फिर मानवभव को प्राप्त हुए हैं, किन्तु जिनके घोरतर पापकर्मों का अन्त नहीं हो पाया है। जिनको पापों का फल भोगना बाकी रह गया है। उस बाकी रहे पापकर्म का फल उन्हें मनुष्ययोनि में भोगना पड़ता है। उसी फल का यहाँ किंचित् दिग्दर्शन मात्र कराया गया है। फल ऐसे पापी प्राणी प्रायः भाग्यहीन होते हैं। उन्हें सर्वत्र निन्दा, अपमान, तिरस्कार और धिक्कार ही मिलता है । शरीर से विकृत बेडौल होते हैं। कुष्ठादि भीषण व्याधियों से और ज्वरादि रोगों से तथा मानसिक रोगों से पीड़ित रहते हैं। वे ज्ञानहीन, मूर्ख होते हैं। वे मनुष्यभव में भी दुःखों के ही पात्र बनते हैं। हैं अथवा क्या नरक से निकले हुए सभी जीव मनुष्य-पर्याय पाकर पूर्वोक्त दुर्दशा के पात्र बनते हैं? इस प्रश्न का उत्तर मूल पाठ से ही मिल जाता है। मूल पाठ में 'पायसो' और 'सावसेसकम्मा' ये दो पद ध्यान देने योग्य हैं। इनका तात्पर्य यह है कि सभी जीवों की ऐसी दुर्दशा नहीं होती, वरन् प्रायः अर्थात् अधिकांश जीव जिनके 5 पापकर्मों का फल भोग पूरा नहीं हुआ है, अपितु कुछ शेष है, वे इस प्रकार के दुःखों के भागी होते हैं। जिन प्राणियों का फल भोग परिपूर्ण हो जाता है, वे कुछ जीव नरक से सीधे निकलकर लोकपूज्य, आदरणीय, सम्माननीय एवं यशस्वी भी होते हैं, यहाँ तक कि कोई-कोई अत्यन्त विशुद्धि प्राप्त जीव तीर्थंकर पद भी प्राप्त करता है। (72) Jain Education International Elaboration-In the present aphorism, the sad state of such living beings has been narrated who, as a result of their sinful acts involving violence, had taken birth among hellish beings and from the hellish life with great difficulty sometimes were re-born as human beings or after going through sufferings in animal state of existence took birth as human beings. However, there had not been an end to the consequences of there dreaded sinful activities. They have yet to suffer some fruit of their bad karmas. They suffer it in the human state of existence. Here that condition as a result of their earlier sins has been described to a certain extant. श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र For Private & Personal Use Only திமிதிமித****மிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிமிழமிழ*********க 卐 தமிழதமிழதழதழததமி*தமிமிதததி************************** 卐 5 फ्र 卐 卐 卐 फ्र Shri Prashna Vyakaran Sutra 卐 5 www.jainelibrary.org

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