Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 493
________________ 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 59595555555555555555555555555 कर्कश-अनिष्ट एवं प्रगाढ़ अर्थात् अत्यन्त तीव्र दुःख उत्पन्न हो जाये और वह दुःख अशुभ या कटुक 卐 द्रव्य के समान अनिष्ट रूप हो, कठोर हो, दुःखमय दारुण फल वाला हो, महान् भय उत्पन्न करने वाला ॥ हो, जीवन का अन्त करने वाला और सारे शरीर में असहाय संताप उत्पन्न करने वाला हो, तो ऐसा म दुःख उत्पन्न होने की स्थिति में भी स्वयं अपने लिए अथवा दूसरे साधु के लिए औषध, भैषज्य, आहार ॥ तथा पानी का संचय करना शास्त्रीय विधी से युक्त नहीं है। 160. An ascetic is practicing the ascetic conduct according to code; he 41 suddenly gets an attack of fever or any other illness which may appear to be dangerous; he may have serious trouble relating to vaat, pitt or or more than one of them simultaneousl; he may not have even a little peace due to it; he may suffer for a very long period; he may have severe pain; that pain may look like a bitter substance and very difficult to bear; it may cause great fear; it may cause pain in the entire body, it may appear like signal for death; even in such a situation a monk should not keep stored food, water or medicine in store for himself or for other monk. विवेचन : पिछले पाठ में सामान्य अवस्था में लोलुपता आदि के कारण आहारादि के संचय करने का निषेध म किया गया था और इस पाठ में यह बताया गया है कि कैसी भी रोगादि की स्थिति हो या मरणासन्नता की है स्थिति हो, वात-पित्त-कफादि के प्रकोप से अनेक रोग यहां तक की सन्निपात रोग भी हो जाय या सारे शरीर में असह्य पीड़ा उत्पन्न हो जाय, कर्मों के तीव्रतम उदय से मरणान्त कष्ट पैदा हो जाय तो भी साधु को अपने या दूसरों के लिये औषध, भैषज्य या भोजनपान का संचय करना या रखना उचित, शास्त्रविधि के अनुकूल नहीं है ॥ अर्थात् अपरिग्रही साधु के जीवन में संग्रह का कोई स्थान नहीं है। Elaboration—In the earlier lesson. The storage of food was prohibited 5 in common situation due to greed for it. In the present lesson it has been prohibited in illness. Here the intensity of illness has been described. It has been stated that illness or torture may be so much dreadful that one is may not have rest even for a moment. It may be lasting for a very long si period. It may cause dreadful pain to the body and the mind. It may be fatal in the end. Even in such a grave situation, a monk should not store food, water and the like. Collection is attachment and such a collection has no place in the ascetic life. साधु के लिये ग्राह्य धर्मोपकरण ARTICLES OF A MONK १६१. जं पि य समणस्स सुविहियस्स उ पडिग्गहधारिस्स भवइ भायण-भंडोवहिउवगरणं पडिग्गहो म पायबंधणं पायकेसरिया पायठवणं च पडलाइं तिण्णेव, रयत्ताणं च गोच्छओ, तिण्णेव य पच्छागा, 55555555555555555555555). 55555555555 श्रु.२, पंचम अध्ययन : परिग्रहत्याग संवर (405) Sh.2, Fifth Chapter: Discar... Samvar Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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