Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 508
________________ 15555555555555555555555555555555555 555555555555555e चित्र - परिचय 24 卐 अपरिग्रह व्रत की पाँच भावनाएँ अपरिग्रह व्रत के साधक को इन पाँच भावनाओं का सदा पालन करना चाहिए (1) श्रोत्रेन्द्रिय संयम भावना वीणा का स्वर, तबले की ताल, ढोलक की ढाप आदि कानों को प्रिय लगने वाले स्वरों को सुनकर साधक आसक्त न बने इसके विपरीत क्रन्दन, रुदन, जोर-जोर से चिल्लाना आदि कान को कटु लगने वाले स्वरों पर क्रोध और द्वेष न करे। - Illustration No. 24 (2) चक्षुरिन्द्रिय संयम भावना स्त्रियों के सुन्दर रूप, बाग-बगीचे, कमल सरोवर, टी.वी., नट का खेल और इसी प्रकार के आँखों को प्रिय लगने वाले रूप एवं दृश्य देखकर उन पर अनुराग न करे एवं अशुभ रूप एवं दृश्य देखकर मन में द्वेष अथवा घृणा भाव न लाये । -- (3) घ्राणेन्द्रिय संयम भावना-चन्दन, गुलाब, सुगन्धित फूलों की माला, श्रेष्ठ धूप और इसी प्रकार की 5 अन्य उत्तम सुगन्धों पर मुनि को आसक्त नहीं होना चाहिए तथा अशुभ गन्धों जैस नाली की दुर्गंध, सड़े-गले जानवरों के शवों आदि से उठने वाली असह्य दूर तक फैली दुर्गंध आदि पर घृणा नहीं करनी चाहिए। (4) रसनेन्द्रिय संयम भावना-सुन्दर रसीला भोजन, विविध प्रकार की घी-तेल आदि से बनी हुई मिठाईयाँ, उत्तम प्रकार के रस, स्वादिष्ट फल एवं इसी प्रकार की अन्य मनोज्ञ रस वाली वस्तुओं पर आकर्षण न करे। इसके विपरीत रसहीन, विकृत, कटु-कषैले पदार्थों एवं अशुभ रसों पर रोष एवं घृणा नहीं करनी चाहिए। (5) स्पर्शनेन्द्रिय संयम भावना-सुन्दर पंलग, मुलायम उत्तम वस्त्र, पानी के फव्वारे आदि के सुखद एवं अनुकुल स्पर्शो के प्रति अनुरक्त नहीं होना चाहिए। इसके विपरीत कठोर शय्या, विहार में ठोकर आदि लगने पर, कर्कश काँटे चुभने पर साधु को रुष्ट नहीं होना चाहिए। - सूत्र 165-169, पृ. 418429 FIVE SENTIMENTS OF VOW OF NON-COVETOUSNESS An aspirant practicing the vow of non-covetousness should always nurture the following five sentiments (1) Sentiment of restraining the sense organ of hearing The aspirant should not get infatuated with the sweet sounds like those of Veena, Tabla, drum etc. At the same time he should not despise and get angry at oppressive and harsh sounds like those of wailing, crying, shouting etc. (2) Sentiment of restraining the sense organ of seeing - The aspirant should not get infatuated with appearances pleasing to the eyes, including beauty of women, gardens, lotus ponds, television, acrobatic performances etc. At the same time he should not despise or be averse to unpleasing and repulsive scenes. (3) Sentiment of restraining the sense organ of smelling - The aspirant should not get infatuated with the sweet smells like those of sandal-wood, rose, garlands of fragrant flowers, incenses and other fragrant substances. He should not despise and get angry at oppressive and repulsive smells like those of sever, rotting cadavers and other such stink. (4) Sentiment of restraining the sense organ of taste - The aspirant should not get infatuated with rich food, sweets cooked in butter, good quality juices, fruits, and other tasty eatables. At the same time he should not despise and get angry at tasteless, stale, bitter, astringent and other such repulsive food. Jain Education International (5) Sentiment of restraining the sense organ of touch The aspirant should not get infatu ated with pleasing and soft touch like that of comfortable bed, soft and good quality dresses, shower from a fountain, etc. At the same time he should not despise and get angry at oppressive and harsh touch like hard bed, hurt of stumbling on a stone, sting of a thorn etc. -Sutra-165-169, pages-418-429 055555556 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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