Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 528
________________ 3555 ))))))))))))))))) )) )))) ) ) सम्पूर्ण संवरद्वार का उपसंहार CONCLUSION OF COMPLETE GATEWAY OF SAMVAR )) )) ) ) )) ) )) )) ) )) __ अब शास्त्रकार शास्त्र की समाप्ति पर इस शास्त्र का निनोक्त परिचयात्मक सूत्र पाठ द्वारा उपसंहार करते हैं। १७१. एयाइं वयाई पंच वि सुब्बय-महब्बयाई हेउसय-विवित्त-पुक्कलाई कहियाई अरिहंत-सासणे पंच समासेण संवरा, वित्थरेण उ पणवीसति। समियसहिय-संवुडे सया ! जयण-घडण-सुविसुद्धदंसणे एए अणुचरिय संचए चरमसरीरधरे भविस्सइ। ज पहावागरणे णं एगो सुयखंधो, दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिसिज्जति एगंतरेसु आयंबिलेसु णिरुद्धेसु आउत्त- भत्तपाणएणं। अंगं जहा आयारस्स। ॥ इइ पण्हवागरणं सुत्तं समत्तं॥ म १७१. हे सुव्रत ! ये पाँचों संवर द्वार (महाव्रत) सैकड़ों निर्दोष-शुद्ध हेतुओं के कारण विस्तीर्ण होते हुये भी अरिहंत भगवान के शासन में संक्षेप में पाँच ही बताये हैं, विस्तार से (प्रत्येक की ॐ पाँच-पाँच भावनाएँ होने से) इनके पच्चीस प्रकार होते हैं। जो साधु ईर्यासमिति आदि (पूर्वोक्त पच्चीस 9 भावनाओं) सहित होता है अथवा ज्ञान और दर्शन से सहित होता है तथा कषायसंवर और इन्द्रियसंवर * से संवृत होता है, जो प्राप्त संयमयोग का यत्नपूर्वक पालन करता है और अप्राप्त संयमयोग की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करता है, सर्वथा विशुद्ध श्रद्धानवान् होता है, वह इन संवरों की आराधना करके भविष्य : में चरम शरीरी होता है। के इस प्रश्नव्याकरण सूत्र में एक श्रुतस्कन्ध है, एक एक जैसे दस अध्ययन हैं। उपयोगपूर्वक आहार-पानी ग्रहण करने वाले साधु द्वारा, जैसे आचारांग का वाचन किया जाता है, उसी प्रकार एकान्तर आयंबिल युक्त तपस्यापूर्वक दस दिनों में इन (दस अध्ययनों) का वाचन किया जाता है। ) )) ) ) נ ת ת ת ת נ ת ת ת ובתום ) )) )) ) ת ॥प्रश्नव्याकरणसूत्र समाप्त॥ ____171. O practitioner of vow ! The five major vows in the form of Samvar , have been described in detail with hundreds of reasons. These five have 41 been mentioned in brief in the order of Tirthankars. There are five y sentiments of each vow. Thus there are twenty five sentiments in all. A monk practices twenty five sentiments such as care in movement (Iriya Samiti) and others or he has right scriptural knowledge and right 4 perception. He has control (Samvar) of passions and of senses. He practices carefully his life of ascetic restraint. He makes serious efforts to practice these ascetic principles which he did not do so far. He has full ) ) 卐 5) श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (438) Shri Prashna Vyakaran Sutra 89595555555555555555555555555550 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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