Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 495
________________ फफफफफफफ 卐 卐 卐 卐 5 अर्थात् राग और दोष से रहित होकर उपयोग करना चाहिए, यह उल्लेख कर दिया गया है। 卐 卐 卐 5 卐 卐 फ्र 卐 पटल - भिक्षा के समय पात्र ढँकने के लिए तीन वस्त्र । रजस्त्राण - पात्रों को धूल से रक्षा के लिये पात्र पर लपेटने का वस्त्र । गोच्छक - पात्रादि के प्रमार्जन के लिए गोच्छक नाम का कंबल खंड । प्रच्छाद- शरीर पर ओढ़ने के वस्त्र चादरें (तीन) । रजोहरण-भूमि, शय्या, पाट आदि प्रमार्जन करने के लिये ओघा । चोलपट्टक - कमर में पहनने का वस्त्र । मुखानन्तक - मुखवस्त्रिका या मुहपत्ति । ये उपकरण संयम - निर्वाह के उद्देश्य से साधु को ग्रहण करने और उपयोग में लाने के हेतु हैं, ममत्व से प्रेरित होकर नहीं । 卐 यहां यह भी स्पष्ट करना आवश्यक है कि गृहीत उपकरणों के प्रति यदि ममत्वभाव उत्पन्न हो जाये तो वही उपकरण परिग्रह बन जाते हैं। इस भाव को प्रकट करने के लिए प्रस्तुत पाठ में भी रागदोसरहियं परिहरितव्यं Elaboration-In the aphorism the word padiggahadhariss indicates that this prohibition is not meant for Jinakalpi monk (monk who remains naked). It is for those Sthavirkalpi monks who keep pots and wear cloth. These articles are kept for smoothly undergoing life of ascetic and for protection of the body in difficult situation. The Here it is necessary to clarify that in case one has attachment for the articles he has acquired, those very articles shall be termed as parigraha. In order to emphasize this fact, the word 'raagdosarahiyam pariharitavyam' has been mentioned which means should be used 5 without attachment or hatred'. 卐 restraint meaning of gourd for collecting food. Patra-bandhan-Cloth to tie pots. Other words have been clarified side by side with their meaning. of some words is as follows-Patadgrah-Pots of wood, earth or A monk accepts these articles for smooth practice of ascetic life and does not have any attachment for them. So it is not parigraha (collection for attachment of possessions). अपरिग्रही साधु का आन्तरिक स्वरूप INNER NATURE OF DETACHED MONK १६२. एवं से संजए विमुत्ते णिस्संगे णिष्परिग्गहरुई णिम्ममे णिण्णेहबंधणे सव्वपावविरए वासीचंदणसमाणकप्पे समतिणमणिमुत्तालेटुकंचणे समे य माणावमाणणाए समियरए समियरागदोसे श्रु. २, पंचम अध्ययन : परिग्रहत्याग संवर फ्र Jain Education International (407) Sh. 2, Fifth Chapter: Discar... Samvar For Private & Personal Use Only फफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफफ 卐 www.jainelibrary.org

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