Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
5步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙牙牙牙牙%%%%%%%
है। जरा-सी सावधानी हटी और वह कहीं का कहीं दौड़ जाता है। अतः सावधान रहकर सदैव यह चिन्तन ॥ करना आवश्यक है कि मन में किसी भी प्रकार का पापमय, अधार्मिक या अप्रशस्त विचार उत्पन्न न हो, इसके लिए सदा शुद्ध भावों, शुभ ध्यानों में मन को संलग्न रखना चाहिए।
तीसरी वचन-समिति भावना- इसमें वाणी-प्रयोग सम्बन्धी विवेक को जगाए रखने की मुख्यता है। वध-बन्धकारी, क्लेशोत्पादक, पीड़ाजनक अथवा तीखे, मन को चुभने वाले वचनों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। साधु के लिए मौन सर्वोत्तम है किन्तु वचनप्रयोग आवश्यक होने पर हित-मित, सत्य और मधुर वचनों का ही प्रयोग करना चाहिए। __ चौथी आहार-एषणा भावना- आहार की प्राप्ति साध को भिक्षा द्वारा ही होती है। अतएव जैनागमों में भिक्षा सम्बन्धी विधि बहुत विस्तारपूर्वक प्रतिपादित की गयी है। भिक्षा सम्बन्धी दोषों का उल्लेख पहले किया जा चुका है। आहार पकाने में हिंसा अवश्यभावी है। किन्तु इस हिंसा से पूरी तरह बचाव भी हो और भिक्षा भी प्राप्त हो जाए, ऐसा मार्ग भगवान् ने बतलाया है। इसी प्रयोजन से साधु जीवन के लिए उद्गमदोष, उत्पादनदोष से रहित शुद्ध भिक्षा चर्या बताई है।
पाँचवीं आदान-निक्षेपणसमिति भावना- साधु अपने शरीर पर भी ममत्वभाव नहीं रखते, किन्तु 'शरीरमायं खलु धर्मसाधनम्' उक्ति के अनुसार संयम-साधना का निमित्त मानकर उसकी रक्षा के लिए अनेक उपकरणों को स्वीकार करते हैं। इन उपकरणों को उठाते समय एवं रखते समय यतना रखनी चाहिए। यथासमय शास्त्र विधिनुसार उनका प्रतिलेखन तथा प्रमार्जन भी अप्रमत्त रूप से करते रहना चाहिए।
इस प्रकार अहिंसा महाव्रत की इन भावनाओं के यथावत् परिपालन से व्रत निर्मल, निरतिचार बनता है के और इन निरतिचार व्रतों का पालक साधु ही सुसाधु है, वही मोक्ष की साधना में सफलता प्राप्त करता है।
Elaboration In the above mentioned aphorism relating to five 5 sentiments, the nature of five sentiments, which are essential for meticulously practicing the major vow of Ahimsa have been discussed. Only such person who conducts his life according to them, can be totally non-violent. Only that person is fit to be called a good monk. He alone can lead a faultless ascetic life.
The five thought-reflections relating to the vow of non-violence are famously known as five samitis.
First sentiment is equanimity in movement (Iriya Samiti). A monk has to move about for various purposes. But his movement should be according to the special code. He should keep in mind his major vow i while moving about. So that it may not cause hurt to any earth-bodied, water-bodied, fire-bodied, air-bodied and plant-bodied immobile living being or any small or gross mobile living being. He should be vigilant continuously that it may not cause any disgust in them. He should be clear about the fact that he has become a monk. So in order to save
白FFFFFFFFFFFFFFFFF55555555555555555555FFFFFFFFFFFF
श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
(291)
Sh.2, First Chapter : Non-Violence Samvar
5555555555555555555555555555555牙牙乐园
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org