Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 377
________________ 8555555555555555555555 55555558 ) ) ) ) ) ) ) ) ) 4 irreligious or as not belonging to a good family, not engaging in charity, 45 卐 not brave, not beautiful, not a lucky one, not educated, not having 卐 knowledge of scriptures or not observing austerities. He should not call a person as one not having a proper understanding about future or of next life. A word which relates to one's class, family, complexions, diseases (such as leprosy), illness (such as fever) and which is going to hurt or condemn others, should not be used. It is not worthy to be uttered. Such a word is going to cause bitterness. It is devoid of respect or cultured behaviour. It is transgressing the limits of gratitude. Such a word may be expressing the truth but even then it should not be uttered. बोलने योग्य सत्य वचन WORDS WORTHY TO BE UTTERED [३] अह केरिसगं पुणाई सच्चं तु भासियव्वं ? जं तं दव्वेहिं पज्जवेहि य गुणेहि कम्मेहिं बहुविहेहिं सिप्पेहिं आगमेहि य णामक्खायणिवायउवसग्गतद्धिय-समास-संधि-पद-हेउ-जोगिय-उणाइ-किरियाविहाणधाउ-सर-विभत्ति-वण्णजुत्तं तिकल्लं दसविहं पि सच्चं जह भणियं तह य कम्मुणा होइ। दुवालसविहा होइ भासा, वयणं वि य होइ सोलसविहं । एवं अरहंतमणुण्णायं समिक्खियं संजएण कालम्मि य वत्तव्यं । [३] (यदि पूर्वोक्त प्रकार के तथ्य-वास्तविक वचन भी बोलने योग्य नहीं हैं तो) प्रश्न उपस्थित ॥ होता है कि फिर किस प्रकार का सत्य बोलना चाहिए? (प्रश्न का उत्तर यह है-) जो सत्य वचन द्रव्यों-त्रिकालवर्ती पदगलादि द्रव्यों से. पर्यायों के से-नवीनता, पुरातनता आदि क्रमवर्ती अवस्थाओं से तथा गुणों से अर्थात् वर्णादि सहभावी गुणों से - युक्त हों अर्थात् द्रव्यों, पर्यायों या गुणों के प्रतिपादक हों तथा कृषि आदि कर्मों से अथवा उठाने-रखने के आदि क्रियाओं से, अनेक प्रकार की चित्रकला, वास्तुकला आदि शिल्पों से तथा आगमों के ॐ सिद्धान्तसम्मत अर्थों से युक्त हों और जो नाम देवदत्त आदि संज्ञापद, आख्यात-तीनों कालों के वाचक क्रियापदों, निपात- 'वा, च' आदि अव्यय, प्र, परा आदि उपसर्ग, तद्धितपद-जिनके अन्त में तद्धित ॐ प्रत्यय लगा हो, जैसे 'नाभेय' आदि पद, समास-अनेक पदों को मिलाकर एक पद बना देना, जैसे म 'राजपुरुष' आदि, सन्धि-समीपता के कारण अनेक पदों का जोड़, जैसे विद्या + आलय = विद्यालय आदि, हेतु-अनुमान का वह अंग जिससे साध्य को जाना जाए, जैसे धूम से अग्नि का किसी विशिष्ट स्थल पर अस्तित्व जाना जाता है, यौगिक-दो आदि के संयोग वाला पद अथवा जिस पद के अवयवार्थ है से समुदायार्थ जाना जाए, जैसे 'उपकरोति' आदि, उणादि-उणादिगण के प्रत्यय जिन पदों के अन्त में 5 ॐ हों, जैसे 'साधु' आदि, क्रिया को सूचित करने वाला पद, जैसे 'पाचक' (पकाने की क्रिया करने वाला), धातु-क्रियावाचक 'भू-हो' आदि, स्वर- 'अ, आ' इत्यादि अथवा संगीतशास्त्र सम्बन्धी षड्ज, ऋषभ, गान्धार आदि सात स्वर, विभक्ति-प्रथमा आदि, वर्ण-'क, ख' आदि व्यंजनयुक्त अक्षर, इनसे युक्त हो । 田FFFFF听听听听听听听听听听听听听听听F 5555555555555555FFFF听听听听听听听听 ) ) ) ) ) ) ) 555555))) श्रु.२, द्वितीय अध्ययन : सत्य संवर (301) Sh.2, Second Chapter : Truth Samvar 图5555555555步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步55555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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