Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 449
________________ फफफफफफफफफ 卐 卐 卐 ***************ததததததததததததததததததததி chastity, 5 his entire ascetic practice becomes bright. The unique inner 卐 power starts shining and his soul becomes grand. When he attains that stage, only then the masters of gods and the masters of asuras and nagas—The demon gods bow to him. Further five sentiments for the protection of the vow of chastity have been narrated. ब्रह्मचर्यव्रत की पाँच भावनाएँ FIVE SENTIMENTS OF VOW OF CHASTITY पूर्वोक्त सूत्रों में ब्रह्मचर्य की महिमा, गौरव, स्वरूप तथा ब्रह्मचर्य पालने वाले को ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिये किस प्रकार सावधान रहना चाहिए, इसका विशद निरूपण किया गया है। अब आगे ब्रह्मचर्य व्रत की सुरक्षा के लिये पांच भावनायें बताई गई हैं। In preceding aphorisms the importance, glory and description of the vow of Brahmacharya has been given in details. Also mentioned is the awareness needed for protecting the vow taken. Now the five sentiments for bolstering the vow of celibacy are detailed. प्रथम भावना- विविक्त- शयनासन FIRST SENTIMENT ALOOF BED १४८. तस्स इमा पंच भावणाओ चउत्थवयस्स होंति अबंभचेरविरमणपरिरक्खणट्टयाए पढमं - सयणासण - घर - दुवार - अंगण - आगास - गवक्ख- साल - अभिलोयण-पच्छवत्थुकपसाहणग - ण्हाणिगावगासा, अवगासा जे य वेसियाणं, अच्छंति य जत्थ इत्थियाओ अभिक्खणं मोहदोस - रइराग - वढणीओ, कर्हिति य कहाओ बहुविहाओ, ते वि हु वज्जणिज्जा । इत्थि - संसत्त - संकिलिट्ठा, अण्णे वि य एवमाई अवगासा ते हु वज्जणिज्जा । जत्थ मणोविब्भमो वा भंगो वा भंसणा [भसंगो ] वा अटं रुद्दं च हुज्ज झाणं तं तं वज्जेज्जवज्जभीरू अणाययणं अंतपंतवासी । एवमसंसत्तवास - बसहीसमिइ - जोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा, आरयमण - विरयगामधम्मे जिइंदिए बंभरगुत्ते । १४८. अब्रह्मचर्य से विरतिरूप चतुर्थ ब्रह्मचर्य व्रत की रक्षा के लिए ये पाँच भावनाएँ हैं 卐 प्रथम असंसक्त वासवसति समिती भावना : ( उनमें से ) प्रथम भावना इस प्रकार है- शय्या, आसन, फ गृहद्वार ( घर का दरवाजा), आँगन, आकाश - ऊपर से खुला स्थान, गवाक्ष - झरोखा, शाला- सामान रखने का कमरा आदि स्थान, अभिलोकन-बैठकर देखने का ऊँचा स्थान, पश्चाद्गृह- पिछवाड़ा पीछे 5 का घर, प्रसाधनक- नहाने और श्रृंगार करने का स्थान इनके अतिरिक्त जहां वेश्याओं के स्थान- अड्डे क हैं और जहाँ स्त्रियाँ बैठती-उठती और बार-बार मोह, द्वेष, कामराग और स्नेहराग की वृद्धि करने 5 श्रु. २, चतुर्थ अध्ययन : ब्रह्मचर्य संवर फ्र Jain Education International (365) Sh. 2, Fourth Chapter: Chastity Samvar For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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