Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 389
________________ 859555555555555555555550 * हासं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज मम्मं, अण्णोण्णगमणं च होज्ज कम्मं, कदंप्पाभियोगगमणं च होज्ज हासं, म आसुरियं किव्विसत्तणं च जणेज्ज हासं, तम्हा हासं ण सेवियव्वं। एवं मोणेण भाविओ भवइ अंतरप्पा संजयकर-चरण-णयण-वयणो सूरो सच्चज्जवसंपण्णो। १२६. पाँचवीं भावना हास्य संयम-वचन संयम रूप है। हास्य का सेवन नहीं करना चाहिए। हँसोड़ ॐ व्यक्ति अलीक-दूसरे में विद्यमान गुणों को छिपाने वाले असत्य वचन तथा अविद्यमान को प्रकाशित करने वाले या अशोभनीय और अशान्तिजनक वचनों का प्रयोग करते हैं। परिहास दूसरों के परिभव-अपमान-तिरस्कार का कारण होता है और हँसी में परकीय निन्दा ही प्रिय लगती है। हास्य के दूसरों को पीड़ा पहुंचाने वाला होता है। हास्य चारित्र का विनाशक, शरीर की आकृति को विकृत करने के वाला है और मोक्षमार्ग का भेदन करने वाला है। हास्य परस्पर एक दूसरे से होता है, फिर परस्पर में परदारगमन आदि कचेष्टा-मर्म का कारण होता है। एक-दूसरे के मर्म-गप्त चेष्टाओं को प्रकाशित करने ॥ वाला बन जाता है, हँसी-हँसी में लोग एक-दूसरे की गुप्त चेष्टाओं को प्रकट करके फजीहत करते हैं। ॐ हास्य कन्दर्प-हास्यकारी अथवा आभियोगिक-आज्ञाकारी सेवक जैसे देवों में जन्म का कारण होता है। ॐ हास्य असुर जाति के भवनवासी देवों की पर्याय में एवं किल्विषिक देवों की पर्याय में उत्पन्न कराता है, 卐 अर्थात् साधु तप और संयम के प्रभाव से कदाचित् देवगति में उत्पन्न हो तो भी अपने हँसोड़पन के के कारण निम्न कोटि के देवों में उत्पन्न होता है। वैमानिक आदि उच्च कोटि के देवों में नहीं उत्पन्न होता। ऊ इस कारण हँसी का सेवन नहीं करना चाहिए। इस प्रकार मौन से भावित अन्तःकरण वाला साधु हाथों, ॐ पैरों, नेत्रों और मुख पर नियंत्रण करने वाला धर्मवीर तथा सत्य और निष्कपट भाव से सम्पन्न हो " जाता है। ____126. Fifth contemplation is avoiding laughter. A monk should not 3 4. laugh at others. A clown tries to conceal good qualities of others and fi project such things, which actually do not exist. He utters unpleasant words that disturb peace. Laughter becomes the cause of disrespect to others. In laughter, there is disgust for others. He likes dishonouring others. Laughter causes pain to others; laughter adversely affects good conduct. It spoils physical expression. It disturbs path leading to salvation. Laughter is mutual among two or more persons. Later it becomes the cause of illicit relation with the wife of the other person. It becomes the cause of making public the secrets or bad behaviour of ki 1 others. People make a fool of others by publicising their secret activities. Laughter results in leading one soul to have re-birth among low category of gods who are in service of other gods or assist them to enjoy through their clownish activities. Laughter produces non-godliness and wretchedness. In other words a monk due to his austerities and 步步步步步步5555$$$$%%%%%%%%%%%%%%%%$$$$$$$$$$55g 步步步5555555555555 श्रु.२, द्वितीय अध्ययन : सत्य संवर (313) Sh.2, Second Chapter : Truth Samvar 8595 5555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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