Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 308
________________ ) )) ))))))))))))))555 'i the present age, many new arts have been invented. The arts which were 4 prevalent in the ancient period have been listed as 72 arts for men and 4 64 arts for women. : One can have a good understanding of the education and way of life of the ancient period by going though these 72 arts of men and 64 arts of women. It is also mentioned in the scriptures that the training in these arts was provided in those day. The very essence of this entire description is that man engages 5 himself in different activities for parigraha (increasing his possessions 45 and becoming attached to them). He makes all out efforts for them and never feels satisfied. He tries more and more for it and in the process succumbs to death. 55555555555555555555555555555555555555))))18 परिग्रह पाप का कटुफल BITTER FRUITS OF ATTACHMENT ९७. परलोगम्मि य गट्ठा तमं पविट्ठा महयामोहमोहियमई तिमिसंधयारे तसथावरसुहुमबायरेसु पज्जत्तमपज्जत्तग-साहारण-पत्तेयसरीरेसु य अण्डय-पोयय-जराउय-रसय-संसेइम-सम्मुच्छिमउभिय-उववाइएसु य णरय-तिरिय-देव-मणुस्सेसु जरामरणरोगसोगबहुलेसु पलिओवमसागरोवमाई . अणाइयं अणवयग्गं दीहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियटॅति जीवा लोहवससण्णिविट्ठा। एसो सो फ़ परिग्गहस्स फलविवागो इहलोइओ परलोइओ अप्पसुहो बहुदुक्खो महत्भओ बहुरयप्पगाढो दारुणो कक्कसो असाओ वाससहस्सेहिं मुच्चइ ण अवेयइत्ता अत्थि हु मोक्खोत्ति। एवमाहंसु णायकुलणंदणो महप्पा जिणो उ वीरवरणामधिज्जो कहेसी य परिग्गहस्स फलविवागं।। एसो सो परिग्गहो पंचमो उ णियमा णाणामणिकणगरयण-महरिह एवं जाव इमस्स मोक्खवरमोत्तिमग्गस्स फलहभूओ। चरिमं अहम्मदारं समत्तं। त्ति बेमि॥ ९७. परिग्रह में आसक्त प्राणी परलोक में और इस लोक में सुगति एवं सुख-शान्ति को नष्ट कर देते हैं। (सन्मार्ग से भ्रष्ट हो जाते हैं) अज्ञानरूपी घोर अंधकार में डूबे रहते हैं। तीव्र मोहनीयकर्म के के उदय से मोहित मति वाले विवेकशून्य हो जाते हैं। लोभ के वश में पड़े हुए जीव त्रस, स्थावर, सूक्ष्म म और बादर पर्यायों में तथा पर्याप्तक और अपर्याप्तक अवस्थाओं में यावत् चार गति वाले संसार-कानन म में सतत परिभ्रमण करते रहते हैं। परिग्रहरूप अधर्म का यह फलविपाक इस लोक और परलोक में अल्प सुख और अत्यन्त दुःख प्रदान करने वाला है। घोर भय से परिपूर्ण है, गाढ़ कर्मबन्ध का कारण है, दारुण है, कठोर है और असाता (दुःखों) का हेतु है। हजारों वर्षों में अर्थात् बहुत दीर्घकाल के प्रयत्न पश्चात् इससे छुटकारा मिलता है। किन्तु इसके फल को भोगे बिना कदापि छुटकारा नहीं मिलता। )))))))));5555555555555555555555555555555555558 49 | श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (242) Shri Prashna Vyakaran Sutra 卐 因%步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步牙牙牙牙齿因 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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