Book Title: Agam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
Publisher: Padma Prakashan
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All this description expresses their external beauty. There is no mention whatever
of their inner nature, behaviour and the like. It is because has been said earlier about the men of the land of enjoyment (bhog bhoomi) should be considered here also. In nutshell the women of this area have mild passion and good nature like men. Just as men live
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on nature, so do the women. Since they live on nature their entire body beautiful. It is always free from diseases. They do not have to face decline
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in health even in old age. In fact they never look old, they remain engrossed in worldly pleasures and enjoyment throughout their life, still they die in a state of non-satisfaction.
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लुब्ध जीवों की दुर्दशा BAD CONDITION OF MEN ATTRACTED TO OTHER'S WOMEN
प्रस्तुत सूत्र पाठ में बताया गया है कि अब्रह्मचर्य सेवन का आचरण करने वाले किस तरह का आचरण करते हैं।
परस्त्री
९०. मेहुणसण्णासंपगिद्धा य मोहभरिया सत्थेहिं हणंति एक्कमेक्कं । विसयविसउदीरएसु परदारेहिं हम्मंति विसुणिया धणणासं सयणविप्पणासं य पाउणंति । परस्स दाराओ जे सणासंपगिद्धा य मोहभरिया अस्सा हत्थी गवा य महिसा मिगा य मारेंति एक्कमेक्कं ।
मयगणा वाणराय पक्खी य विरुज्झंति, मित्ताणि खिप्पं हवंति सत्तू । समए धम्मे गणे य भिंदंति पारदारी | धम्मगुणरया य बंभयारी खणेण उल्लोट्ठए चरित्ताओ। जसमंतो सुव्वया य पावेंति अयसकित्तिं । रोगत्ता वाहिया पवडूढेंति रोगवाही ।
दुवे लोया दुआराहगा हवंति - इहलोए चैव परलोए परस्स दाराओ जे अविरया ।
तहेव केइ परस्स दारं गवेसमाणा गहिया य हया य बद्धरुद्धा य एवं जाव गच्छंति विउलमोहाभिभूयसण्णा ।
९०. जो मनुष्य मैथुनसंज्ञा में अर्थात् मैथुन सेवन की वासना में अत्यन्त आसक्त रहते हैं और मूढ़ता अथवा कामवासना से भरे हुए होते हैं, वे परस्पर में एक-दूसरे का शस्त्रों से घात करते रहते हैं । कोई-कोई विषयरूपी विष की उदीरणा करने वाली अर्थात् विषयवासना बढ़ाने वाली परकीय स्त्रियों में प्रवत्त होकर दूसरों के द्वारा मारे जाते हैं। जब उनकी परस्त्री लम्पटता प्रकट हो जाती है तब (राजा या शासन द्वारा) उनकी सम्पत्ति और कुटुम्ब का विनाश किया जाता है।
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
अवरे
जो परस्त्रियों से विरत नहीं हैं और मैथुनसेवन की वासना में अतीव आसक्त हैं और मोह से भरपूर हैं, ऐसे घोड़े, हाथी, बैल, भैंसे और मृग-वन्य पशु परस्पर लड़कर एक-दूसरे को मार डालते हैं। मनुष्यगण, बन्दर और पक्षीगण भी मैथुनसंज्ञा के कारण परस्पर विरोधी बन जाते हैं। मित्र शीघ्र ही शत्रु बन जाते हैं।
अविरया
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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