Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 12
________________ (x) प्रस्तुत आगम के दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययन हैं१. उक्खित्तणाए २. संघाडे ३. अंडे ४. कुम्मे ५. सेलगे ६. तुंबे ७. रोहिणी ८. मल्ली ६. मायंदी १०. चन्दिमा ११. दावद्दव १२. उदगणाए १३. मंडुक्के १४. तेयली १५. नंदीफले १६. अवरकंका १७. आइण्णे १८. सुंसुमा १६. पुंडरीए द्वितीय श्रुतस्कन्ध की धर्मकथाओं की संख्या विस्तार से उपलब्ध है। धर्मकथा के दस वर्ग हैं। प्रत्येक धर्मकथा में पांच-पांच सौ आख्यायिकाएं हैं। प्रत्येक आख्यायिका में पांच-पांच सौ उप-आख्यायिकाएं हैं। प्रत्येक उप-आख्यायिका में पांच-पांच सौ आख्यायिक उपाख्यायिकाएं हैं। इस प्रकार कुल मिलाकर इसमें साढ़े तीन करोड़ आख्यायिकाएं हैं।' ये आज अनुपलब्ध हैं। अनुपलब्ध क्यों हुई ? यह एक विमर्शनीय बिन्दु है। भगवती जैसा विशालकाय आगम उपलब्ध है और ज्ञाता के उन्नीस अध्ययन उपलब्ध हैं। फिर धर्मकथाएं अनुपलब्ध क्यों हुई ? इस प्रश्न का उत्तर सम्भावना और अनुमान के आधार पर ही दिया जा सकता है। उत्तरवर्ती जैन आचार्यों का जितना आकर्षण द्रव्यानुयोग और चरणकरणानुयोग में रहा उतना गणितानुयोग और धर्मकथानुयोग में नहीं रहा। उस समय लेखन की समस्या थी। उस स्थिति में कथा साहित्य की समस्त और असमस्त पदावलि को स्मृति में रखना सम्भव नहीं रहा। साढ़े तीन करोड़ कथाओं को स्मृति में रखना सरल काम नहीं था। इसलिए धर्मकथा का बृहत्तम भाग विलुप्त हो गया। द्वादशाङ्गी के विलोप की समस्या सामने थी अतः उस समय चयन करना आवश्यक हो गया था कि प्राथमिकता किसको दी जाए। सम्भवतः द्रव्यानुयोग और चरणकरणानुयोग को प्राथमिकता दी गई और शेष दो अनुयोगों की उपेक्षा की गई। इसलिए धर्मकथाएं विलुप्त हो गई। प्रथम श्रुतस्कन्ध के उन्नीस अध्ययनों में चरित्र और दृष्टान्त का वर्गीकरण इस प्रकार है : चरित्र दृष्टान्त १. उक्खित्तणाए २. संघाडे ५. सेलगे ३. अंडे ४. कुम्मे ८. मल्ली ६. तुम्बे ७. रोहिणी १०. चन्दिमा ६. मायंदी ११. दावद्दव १२. उदगणाए १५. नंदीफले १३. मंडुक्के १४. तेयली १७. आइण्णे १६. अवरकंका १८. सुंसुमा १६. पुंडरीए प्रतिपाद्य-प्रत्येक आगम का प्रतिपाद्य है अध्यात्म। भगवान महावीर का दर्शन आत्मा की परिक्रमा कर रहा है। उक्खित्तणाए-मेघकुमार विचलित हो गया। आत्मसंबोध के द्वारा उसका स्थिरीकरण किया गया। यदि भगवान महावीर उसे पुनर्जन्म की स्मृति (जातिस्मृति) नहीं कराते और मेघकुमार को हाथी के जन्म का स्मरण नहीं होता तो उसका स्थिरीकरण करना कठिन होता। पुनर्जन्म की स्मृति वैराग्य का बहुत बड़ा हेतु है। १. समवाओ, प्रकीर्णक समवाय, सूत्र ६४ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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