Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ सूत्रकृताङ्गसूत्रे (शिखरिणीछन्दः) चतुर्ज्ञानोपेतं जिनवचनपीयूषमतुलं, पिबन्तं कर्णाभ्यामविरतिपुटाभ्यां गुणगृहम् । अघौघं भिन्दन्तं सकलजनकल्याणसदनं, प्रणम्य प्रेम्णा तं गुणिषु गुणिनं गौतममिनम् ॥२॥ शार्दूलविक्रीडितम्] षटकायप्रतिपालकं च करुणाधर्मोपदेशप्रदं, __ यत्नार्थ मुखवस्त्रिकाविलसितास्येन्दुं प्रसन्नाननम् । अन्तर्धान्तविनाशकाध्रिनखरज्योतिश्चयं चिन्तयन् , वन्दित्वोगविहारिणं गुरुवरं पञ्चव्रताराधकम् ॥३॥ "चतुर्ज्ञानोपेतं" इत्यादि। चार ज्ञानों से सम्पन्न, कानों से जिनवचन रूपी अनुपम अमृत का पान करने वाले और भव्यों को पान कराने वाले, गुणों के सदन (गृह) पापों के समूह को भेदने वाले, समस्त प्राणियों के कल्याणके धाम तथा गुणीजनों मे याने ज्ञानादिगुणयुक्त मुनिजनों में भी विशिष्ट गुणी श्री गौतम स्वामी को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके ॥२॥ "षटकाय" इत्यादि। __ आन्तरिक अन्धकार को सर्वथा नष्ट करने वाली चरणों के नाखूनों की प्रखर ज्योतिका चिन्तन करता हुआ मैं छहकायों के जीवों की रक्षा करने वाले, करुणा दयाधर्म का उपदेश देनेवाले, यतना के लिये दोरे सहित मुखवस्त्रिका को मुखपर बांधनेवाले प्रसन्नवदन, उपविहार करने वाले तथा पांच महाव्रतों के आराधक गुरुवर को नमस्कार करके ॥३॥ "चतुर्ज्ञानोपेतं" त्या ચાર જ્ઞાનથી સંપન્ન જિનવચન રૂપી અનુપમ અમૃતનું પિતાના કર્ણો વડે પાન કરનારા અને ભવ્યને તેનું પાન કરાવનારા, ગુણેના સદન(ગૃહ), પાપોના સમૂહને ભેદનારા, સમસ્ત પ્રાણુઓના કલ્યાણના ધામ રૂપ તથા ગુણીજનમાં-જ્ઞાનાદિ ગુણયુક્ત મુનિજનમાં-પણે વિશિષ્ટ ગુણી એવા શ્રી ગૌતમસ્વામીને પ્રીતિપૂર્વક નમસ્કાર કરીને પરા "षटकाय" त्याह આન્તરિક અંધકારને સર્વથા નાશ કરનારી ચરણોના નખની પ્રખર જ્યોતિનું ચિન્તન કરતો થકે હું છકાયના જીવોની રક્ષા કરનારા, કરૂણ-દયા ધર્મના ઉપદેશક, શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૧

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 709